Nau Grah Ki Katha

नौ ग्रह की कथा।


एक गांव में दो भाई बहन रहते थे। एक बार की बात है भाई अपनी बहन से मिलने जा रहा था। सांप ने भाई को देखा तो उसको डसने के लिए तैयार हो गया। भाई ने सांप से विनती की कि वह उसे छोड़ दे, मैं अपनी मां का इकलौता बेटा हूं और अपनी बहन का भी इकलौता भाई हूं। परन्तु सांप ने उसकी बात नहीं मानी और कहने लगा कि तेरी नौ ग्रह की दशा चल रही है इसलिए मैं तो तुझे डस के ही रहूंगा। भाई ने जब देखा कि सांप मान नहीं रहा है तो उसने कहा कि ठीक है तुम मुझे डस लेना लेकिन पहले मुझे अपनी बहन से मिल आने दो। मैं अपनी बहन से मिल कर वापस आ जाऊंगा। सांप बोला कि मैं कैसे तुम्हारा विश्वास कर लूं, क्या पता तुम इस रास्ते से वापस ही ना आओ। इसलिए मुझे तुमको अभी डसना है।

भाई ने सांप से कहा कि अगर तुमको मुझ पर भरोसा नहीं है तो तुम मेरे साथ मेरे थैले में बैठ कर मेरे बहन के घर चलो। उसकी बात सुनकर सांप ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हारे साथ चलता हूं जब तुम अपनी बहन से मिल लोगे तो मैं तुम्हे डस लूंगा। भाई ने सांप को थैले में रख कर उसके ऊपर फूल पत्ते रख दिए। भाई जब बहन के घर पहुंचा उस समय उसकी बहन नौ ग्रह की कहानी कह रही थी। बहन ने भाई को देखा तो बोली कि भाई तू पहले बैठ जा, पहले हम कहानी कहेंगे और उसके बाद दोनों बातें करेंगे। भाई बैठ गया तो बहन ने कहानी शुरू की। जीव की, जानवर की, हाथी की, घोड़े की, भाई बहन की, घर के धनी की, लड़की के जमाई की, देवरानी की, जेठानी की, सास की ससुर की, संग की सहेलियों की सबके नौ ग्रह शांत हो जाओ। ग्रह चले आठ पग बन्दा चले चार पग, सांप बिच्छू भंवरे सब आग में जल जाएं। कहानी कह कर बहन खड़ी हो गई।

कहानी कहने के बाद बहन ने अब भाई की सुध ली। भाई इस थैले में क्या लाया है? भाई बोला कि कुछ नहीं बहन इसमें कुछ भी नहीं लाया हूं, लेकिन बहन ने जबरदस्ती थैला भाई के हाथ से छीन लिया। बहन ने जब थैला खोलकर देखा तो उसमें रखे बेल पत्र व फूल केले संतरे बन गए और जो सांप था वह एक सुंदर हार बन गया था। बहन ने केले संतरे बच्चों को दे दिए और हार खुद पहन लिया। हार पहन कर जब बहन बाहर आई तो भाई ने उसको देख कर पूछा कि बहन तू तो बहुत गरीब थी फिर यह हार कहां से आया? बहन ने कहा कि हां भाई मैं तो गरीब थी और आज भी गरीब ही हूं यह हार तो तू अपने थैले में डाल कर लाया है। यह सुनकर भाई को बहुत आश्चर्य हुआ कि मैं तो थैले में अपनी मौत का सामान लाया था। भाई ने कहा कि बहन ये हार मैं नहीं लाया हूं मेरे थैले में तो सांप था जो मुझे डसने के लिए साथ में आया था। तेरी कहानी सुनने से ये हार बन गया है, यह हार तेरे भाग्य का है इसलिए इसे तू ही रख।

बहन ने भाई से कहा कि भाई तेरी नौ ग्रह की दशा चल रही है, तू घर जाकर भाभी से कहना कि वह नौ ग्रह की कहानी कहे। भाई ने घर पहुंचकर अपनी पत्नी से कहा कि मेरी नौ ग्रह की दशा चल रही है इसलिए हम नौ ग्रह की कहानी कहेंगे। भाई पत्नी से बोला तू कहे मैं सुनूंगा, मैं कहूं तू सुनना, चावल–चीनी के दाने ला, लोटा भर पानी ला। उसकी पत्नी एक लोटे में चावल व चीनी के दाने डाल कर ले आई। कहानी जीव की, जानवर की, हाथी की, घोड़े की, कुत्ते की, बिल्ली की, देवरानी की, जेठानी की, सास की, ससुर की, घर के धनी की, बहन की, भाई की, सबके नौ ग्रह शांत हो जाएं। ग्रह चले आठ पग, बन्दा चले चार पग, सांप, बिच्छू, भंवरे सब आग में जल जाएं।

आज वार रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार सातों वारों को नमस्कार! धरती माता को नमस्कार! जैसे नौ ग्रह की दशा भाई बहन की , भाई की उतारी वैसे सबकी उतरना।

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