Rath Saptami Vrat Katha In Hindi.

रथ सप्तमी:
रथ सप्तमी का व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रखा जाता है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य की आराधना की जाती है। माना जाता है कि सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों में स्नान करने से सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। आज के दिन सुबह उठकर सूर्य नमस्कार और आराधना करने से घर में सुख-शांति आती है, साथ ही घर के सभी कलेश खत्म हो जाते हैं। यह सूर्य के जन्म का भी प्रतीक है इसलिए इसे सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
रथ सप्तमी व्रत कथा 1
एक बार की बात है कम्बोज साम्राज्य पर राजा यशोवर्मा नामक महान राजा राज्य किया करते थे। उनके कोई सन्तान नहीं थी। राजा ने अनगिनत देवी देवताओं के मन्दिरों में जाकर मन्नतें मुरादें मांगी ताकि उन्हें अपने राज्य के लिए कोई वारिस मिल जाए। परिणाम स्वरूप ईश्वर की कृपा से उन्हें एक सन्तान की प्राप्ति हुई। उनकी यह खुशी अधिक दिनों तक बनी न रह सकीं क्योंकि उनका पुत्र मानसिक रूप से बीमार था। तभी उनके राज्य में एक साधु भ्रमण करते हुए पहुंचे। राजा ने अपने राजमहल में साधु का बहुत आदर सत्कार किया।
अपनी सेवा से प्रसन्न होकर साधु ने बदले में कुछ मांगने को कहा। इस पर राजा ने अपने पुत्र की मानसिक बीमारी की व्यथा उन्हें सुनायी। साधु ने कहा कि यह सब तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है जिस कारण से तुम्हारे पुत्र की यह हालत है। इस सबसे उबरने के लिए साधु ने राजा को सूर्य रथ सप्तमी का व्रत पूरी सच्ची श्रद्धा और निष्ठा के साथ रखने को कहा। राजा ने भी रथ सप्तमी पूजा पूरी विधि विधान से की।
इस सबका परिणाम यह हुआ कि राजा का पुत्र धीरे धीरे मानसिक लाभ प्राप्त करने लगा और पूरी तरह ठीक हो गया। राजा के बाद उसके इस उत्तराधिकारी पुत्र ने राज्य पर शासन किया और कीर्ति, यश प्राप्त किया।
रथ सप्तमी व्रत कथा 2
रथ सप्तमी की दूसरी पौराणिक व्रत कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल पर बहुत अभिमान हो गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए। वे बहुत अधिक दिनों तक तप करके आए थे और इस कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था। शाम्ब उनकी दुर्बलता को देखकर जोर-जोर से
हंसने लगा और अपने अभिमान के चलते उनका अपमान कर दिया। तब दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित होकर शाम्ब को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। दुर्वासा ऋषि के श्राप देने से शाम्ब कुष्ठ रोगी हो गया। उसकी यह स्थिति देखकर श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने भगवान सूर्य की आराधना करना प्रारंभ किया, जिसके फलस्वरूप कुछ ही समय पश्चात उसे कुष्ठ रोग मुक्ति प्राप्त हो गई।
इसलिए जो श्रद्धालु रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना विधिवत तरीके से करते हैं। उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में सूर्य को आरोग्य दायक कहा गया है तथा सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का मार्ग भी बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यदि विधि-विधान से यह व्रत किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है। इस व्रत को करने से शरीर की कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी, जोड़ों का दर्द आदि रोगों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं भगवान सूर्य की ओर अपना मुख करके सूर्य स्तुति करने से चर्म रोग जैसे गंभीर रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
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