Sakat Chauth Vrat Katha In Hindi –3

Sakat Chauth Vrat Katha
किसी राज्य में एक कुम्हार रहता था। पूरे राज्य के बर्तन उस कुम्हार के यहां ही बनते थे। एक दिन वह कुम्हार ने बर्तन पकाने के लिए आवां लगाया तो बर्तन नहीं पके। इस बात से वह दुखी होकर अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गया। राजा ने पंडितो को बुलाकर कुम्हार की समस्या के बारें में पूछा। पंडितो ने कहा कि महाराज आवां बलि मांग रहा है इसलिए कुम्हार को आवा लगाने के लिए रोजाना एक बच्चे की बलि देनी होगी। बलि देने से आवा स्वयं पक जाएगा। राजा ने उस कुम्हार को बच्चे की बली देने की आज्ञा दे दी थी।
वह कुम्हार रोज किसी बच्चे की बलि देकर आवा जलाता और अपने बर्तन को पकाता। ऐसा करते हुए बहुत दिन बीत गए। उसी राज्य में एक बुढिया रहती थी। जिसके केवल एक ही बेटा था। उसका पति बहुत पहले स्वर्ग सिधार गया था। बुढ़िया ने बहुत मेहनत कर के उस लड़के को पाला पोसा था। बुढ़िया हमेशा ही चौथ माता व भगवान गणेश जी की पूजा व व्रत करती थी। एक दिन उसके बेटे का नबंर आया तो बुढ़िया बहुत दुःखी हो गई और दौड़ी–दौड़ी राजा के पास पहुंच कर रोने लगी कि महाराज! मेरे जीवन का तो एक सहारा है अगर वह भी नहीं रहेगा तो मैं किसके सहारे जियूंगी। लेकिन राजा ने कहा कि माई ये नियम तो सभी के लिए है इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता हूं। राजा के यहां से निराश होकर बुढ़िया रोती–रोती जंगल में चली गई और खूब जोर–जोर से विलाप करते हुए भगवान को याद करने लगी। उसी समय उधर से शंकर–पार्वती जी आकाश मार्ग से जा रहे थे। पार्वती जी ने जब बुढ़िया को इस तरह से रोते हुए देखा तो शंकर जी से बोलीं कि हे प्रभु! ये बुढ़िया क्यों रो रही है? इसे क्या दुःख है! भगवान शंकर ने कहा कि हे प्रिये! ये मृत्युलोक है यहां पर हर किसी को कोई न कोई दुःख अवश्य होता है, तुम किस–किस का दुःख दूर करेगी। लेकिन पार्वती जी जिद करने लगीं तो वो दोनों लोग भेष बदलकर बुढ़िया के पास पहुंचे। पार्वती जी ने बुढ़िया से पूछा कि हे माई! तुम इस तरह से क्यों रो रही हो? तुम्हे क्या दुःख है, मुझे बताओ! बुढ़िया ने पहले तो कहा कि तुम क्या कर लोगी मेरे दुःख को जानकर! लेकिन पार्वती जी के जिद करने पर उसने अपना दुखड़ा उनको कह सुनाया। इसपर शंकर–पार्वती जी ने उसको थोड़े से जौ और एक सुपारी देते हुए कहा कि जब तुम्हारा बेटा आवा में बैठे तो उसके चारों तरफ गोलाई से इस जौ को छिड़क देना और उसके हाथ में ये सुपारी देकर कहना कि वह ॐ गणेशाय: नमः का जाप करता रहे। बुढ़िया को विश्वास तो नहीं था लेकिन फिर भी उसने यह सोचकर हामी भर दी कि वैसे भी तो सिपाही उसके बेटे को छोड़ेंगे तो हैं नहीं तो ये कर के देखने में क्या बुराई है। उसने सुपारी और जौ लिया और जल्दी–जल्दी अपने घर आ गई। जैसे ही रात हुई राजा के सिपाही उसके बेटे को लेने के लिए आ गए। अब बुढ़िया उनसे जिद करने लगी कि मैं भी चलूंगी अपने बेटे को बैठाने के लिए! पहले तो सिपाहियों ने मना किया फिर उनको बुढ़िया पर तरस आने लगा तो उसे अपने साथ ले कर चले गए। वहां पहुंचकर बुढ़िया बोली कि मैं अपने बेटे को खुद से ही आवा में बैठाऊंगी। पहले तो सबने मना किया लेकिन फिर कहा कि ठीक है अम्मा बैठा दो तुम ही अपने बेटे को। बुढ़िया ने अपने बेटे को आवा में बैठा दिया उसके हाथ में सुपारी दी फिर उसके चारों तरफ जौ दे दाने छिड़क कर उससे कहा कि तुम आंख बंद कर के ॐ गणेशाय नमः का जाप करते रहना और सिपाहियो ने आवा लगा दिया।
जैसे तैसे बुढ़िया ने अपनी रात काटी। जैसे ही भोर होने लगी तो वह फौरन आवा के पास पहुंच कर सिपाहियों से आवा खोलने की जिद करने लगी। सिपाहियों ने हंसकर कहा कि अरे अम्मा! तुम क्या देखोगी अब, अब तक तो वह राख बन गया होगा। कुछ सिपाही को नेक दिल थे उन्होंने कहा कि खोल दो बेचारी देख लेगी तो चली जायेगी। जैसे ही उन्होंने आवा खोला तो देखते ही रह गए। आवा के सारे बर्तन सोने और चांदी के हो गए थे। आवा के अंदर खूब ऊंची–ऊंची जौ लहलहा रही थी और उसके बीच में बुढ़िया का बेटा आंख बंद करके ॐ गणेशाय नमः का जाप कर रहा था। सिपाही यह देखकर सकते में आ गए। उन्होंने बुढ़िया को बन्दी बना लिया और उसे अपने साथ लेकर राजा के दरबार में पहुंचे। राजा को जब सारी बात पता चली तो उसने बुढ़िया से पूछा कि तुमने कौन सा जादू टोना किया है जो तुम्हारा बेटा आवा में नहीं जला? बुढ़िया रोते हुए बोली कि हे महाराज! मैंने कोई जादू टोना नहीं किया है जो किया है भगवान ने किया है और रोते हुए जंगल की घटना राजा को सुना दी। लेकिन राजा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने कहा कि ठीक है मैं तुम्हारी परीक्षा लूंगा अगर तुम सच बोल रही हो तो तुम्हारे भगवान तुम्हे यहां भी बचाने के लिए आएंगे।
राजा ने अपने पैरों में फूलों की बेड़ियां डलवा लीं और बुढ़िया के पैरों में लोहे की बेड़ियां डलवा दीं और कहने लगे कि भगवान से कहो कि मेरी बेड़ी कटकर तुम्हारे पैरों में पड़ जाए और तुम्हारी बेड़ी कटकर मेरे पैरों में पड़ जाएं। तभी मैं मानूंगा, नहीं तो तुम्हे और तुम्हारे बेटे को मृत्युदंड दिया जायेगा। अब बुढ़िया रोते हुए भगवान को याद करने लगी कि हे भगवन्! वहां तो आपने मेरी मदद कर दी अब इस संकट से मुझे बचा लो। काफी देर हो गई बुढ़िया को भगवान से प्रार्थना करते हुए तो सभी उसकी हंसी उड़ाने लगे कि बड़ी झूठी औरत है सबको मरवा दिया पहले से ही जादू जानती थी फिर भी किसी को नहीं बचाया। बड़ी आई जो भगवान इसकी मदद करने आए थे। इतने में ही बहुत जोर से हवाएं चलने लगीं और देखते ही देखते राजा के पैर की बेड़ियां कटकर बुढ़िया के पैरों में पड़ गईं और बुढ़िया की बेड़ियां कटकर राजा के पैरों में। राजा ने जैसे ही यह देखा तो बुढ़िया के पैरों में गिर कर के क्षमा मांगने लगा।
राजा ने बुढ़िया को और उसके बेटे को आजाद कर दिया और उन्हें खूब सारा धन देकर उनको प्रणाम करके विदा किया। उस दिन के बाद से फिर कभी भी आवा में बलि देने की जरूरत नहीं पड़ी। आवा में अपने आप ही बर्तन पकने लगे और जिन बच्चों की बलि दी गई थी वे सब भी जीवित होकर अपने घर वापस आ गए।
हे सकट माता जैसा आपने बुढ़िया को फल दिया वैसा ही सबके बच्चों पर अपना हाथ बनाए रखना! बोलो सकट माता की जय हो!
ॐ गणेशाय नमः
ॐ नमः शिवाय