Mokshada Ekadashi Vrat Katha In Hindi.
मोक्षदा एकादशी:
मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उन्हे उनके कर्मो और बंधनों से मुक्ति मिलती है। मोक्षदा एकादशी का व्रत श्री हरि के नाम से रखा जाता है। श्री हरि की कृपा से मनुष्य को उसके पापों से छुटकारा मिल जाता है, और मृत्यु के बाद उसका उद्धार होता है। इस व्रत को करने का सबसे बड़ा कारण यह है कि जो व्यक्ति इस व्रत को करता है उसके पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। आइए जानते हैं मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा:–
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा :
गोकुल नाम के एक नगर में वैखानस नाम का राजा राज्य करता था। राजा को वेदोंका बहुत ज्ञान था। उसके राज्य मेंभी चारों वेदों को जानने वाले ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पालन अपने परिवार की तरह करता था। एक बार रात्रि में उस राजा ने एक सपना देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। सुबह उठते ही वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना सपना उन्हे कह सुनाया। राजा ने कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे! पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं, मुझे यहां से मुक्त कराओ। जब से मैंने उनके ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। मन में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। राजा ने कहा- कि इस दुःख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है।
आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि का ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को नरक से मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सकें। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है,परंतु हजारों तारे वह नहीं कर सकते हैं। ब्राह्मणों ने राजा से कहा- कि हे! राजन! यहां पास में ही भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। वह आपकी समस्या का हल जरूर बताएंगे। यह सुनकर राजा ब्राह्मणोंके साथ मुनि के आश्रम पर गया।
उस आश्रम में अनेकों शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को देख सादर प्रणाम किया और मुनि ने राजा से उनकी प्रजा की कुशलता के समाचार लिए। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अचानक ही मेरे चित में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे। पर्वत ऋषि ने अपनी आंखें खोली फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरी पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया।
उसी पाप के कारण तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा। तब राजा ने कहा कि कृपा करके इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नरक से मुक्ति होगी। मुनि की बात सुनकर राजा अपने महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने अपने पिता को अर्पण कर दिया। उसके व्रत के प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे हे पुत्र तेरा कल्याण हो, यह कहकर वह स्वर्ग चले गए।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत सब कामनाएं पूर्ण करने वाला तथा मोक्ष देने वाला है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से यज्ञ करने जितना का फल मिलता है।