Shradh Paksh Ki Dhodha Bai Ki Kahani In Hindi.

श्राद्ध पक्ष की धोधा बाई की कहानी:
एक समय की बात है। किसी नगर में एक सेठ–सेठानी रहते थे। उनके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी का नाम धोधा बाई था। उन दोनों का विवाह सेठ और सेठानी ने बहुत धूमधाम से किया था। घर में खूब धन दौलत थी। एक दिन सेठ और सेठानी की मृत्यु हो गई। धोधा बाई विधवा हो चुकी थी और अपने भाई के घर में रहती थी। इस बात से उसकी भाभी बहुत नाराज रहती थी। ऐसे ही पितृपक्ष आया तो भाई बोला मैं पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए हरिद्वार जा रहा हूं, तुम मेरे जाने के बाद मेरी बहन को बुलाकर पंद्रह दिन तक भोजन करवा देना। जो भी सामान चाहिए मैं लाकर रख देता हूं। पत्नी बोली कि ठीक है । सामान लाकर रखने के बाद वो हरिद्वार चला गया। उसके जाने के बाद उसकी पत्नी बोली कि मेरी बहन का नाम पौधा है और ननद का नाम धोधा है। धोधा को भोजन ना करवा कर पौधा को भोजन करवा देती हूं। ऐसा सोचकर वह अपनी बहन को पंद्रह दिन तक आकर भोजन करने के लिए कह आई।
अपनी बहन को खाने के लिए कहने के बाद उसने ननद को घर से बाहर निकाल दिया और बाहर खेत में ननद और उसके बच्चों के लिए झोपड़ी डलवा दी। अपने बच्चों के साथ धोधा बाई झोपड़ी में रहने लगी। सुबह शाम वह धोधा को घर का काम करने के लिए बुला लेती थी, धोधा भाई के घर जाकर घर का सारा काम कर आती थी। धोधा बाई लकड़ी की भारी लेने रोज जाती थी। उसी से गुजरा होता था। परन्तु भाभी ने काम के लिए बुलाया, तो उसने लकड़ी की भारी लाना छोड़ दिया। काम के बदले में भाभी बचा खुचा खाना उसे खाने को दे देती थी। जब भी वह भाभी के घर से आती तो आटा छानने वाला कपड़ा अपने साथ ले आती थी। घर आकर उस आटे में सने कपड़े को पानी में घोल कर चूल्हे पर चढ़ाकर पकाकर बच्चों को देती और कहती कि खीर है खा लो। बच्चे वही खाकर सो जाते थे।
ऐसे ही उसका समय बीत रहा था। एक बार भाभी ने उसे आटा छानने वाला कपड़ा ले जाते देख लिया। भाभी धोधा से बोली बाई जी आटा छानने का कपड़ा कहां ले जा रही हो? इसे यहीं छोड़कर जाया करो। धोधा ने कहा कि ठीक है, उस दिन भाभी ने उसे बचा खुचा भोजन भी नहीं दिया। भाभी बोली कल आपकी मां का श्राद्ध है, बिना बुलाए तो आना मत! हां आँगन में लगा ये पीपल का पेड़ अगर अपनी जगह से हिले तो आ जाना। ये सुनकर धोधा बेहद दुखी हुई और रोती रोती अपने घर चली गई। घर पहुंची तो बच्चे बोले मां भूख लगी है, कुछ खाने को दो। वह बच्चों से बोलीं कि बेटा आज हम सब का उपवास है, इसलिए खाना नहीं खाना है आज भूखे की सो जाओ।
अगले दिन बच्चे बोले कि मां! मामी ने कहा था कि आज नानी का श्राद्ध है तो चलो वहां चलते हैं। तो धोधा बोली कि बेटा मामी ने कहा था कि आंगन में लगा पीपल का पेड़ अगर अपनी जगह से हिले तो आ जाना। तुम बताओ कभी पेड़ हिलता है? पत्ते हिलते हैं, टहनियां हिलती है, कभी पेड़ को हिलते देखा है? उसने बच्चों को समझाया कि बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए। शाम हुई तो उसके भतीजे आए और बोले बुआ मां ने भोजन भेजा है। उसने देखा कि भोजन के नाम पर दो सूखी रोटियों के ऊपर थोड़े से चावल रखे थे। यह देख कर उसे बहुत गुस्सा आया और अपने बच्चों से बोली इसे झोपड़ी के ऊपर फेंक दो और वह भूखे ही अपने बच्चों को लेकर सो गईं। सारी रात गंगा मां को याद करती रहीं और प्रार्थना करती रही कि हे! मां गंगा, मेरे भाई की रक्षा करना वो हमारी रक्षा करेगा।
अगले दिन फिर भाभी आई और बोली बाई जी कल तुम्हारे पिता का श्राद्ध है बिना बुलाए मत आना लेकिन आंगन में लगा पीपल का पेड़ हिले तो आ जाना! अगले दिन भी वे भाभी के घर भोजन के लिए नहीं गईं। शाम को फिर उसके भतीजे आए और दो सूखी रोटियां चावल के साथ दे गए। उसने फिर वह रोटी और चावल झोपड़ी के ऊपर फिकवा दीं और भूखे ही बच्चों को लेकर सो गई और सारी रात रोती रही मां गंगा से प्रार्थना करती रही कि हे! मां गंगा, मेरी भाई की रक्षा करना, वो हमारी रक्षा करेगा।
इस तरह पितृपक्ष के 16 दिन बीत गए। उसका भाई वापस आया तो उसने देखा उसके घर के आंगन में कीचड़ ही कीचड़ भरा हुआ है। उसने अपनी पत्नी से पूछा कि इतना कीचड़ क्यों है? मेरी बहन और भांजे कहां है? तो उसकी पत्नी बोली श्राद्ध के पूरे सोलह दिनों तक मैंने तुम्हारी बहन और भांजों के पैर कच्चे दूध से धोए हैं, इसलिए यहां कीचड़ हो रहा है। तुम्हारे पीछे से मैंने उनकी खूब सेवा की, खीर पूड़ी खिलाई, फिर भी वो मुझसे नाराज होकर खेत में झोपड़ी डालकर रह रही हैं। भाई खेत पर पहुंचा तो वह देखता क्या है कि वहां कोई झोपड़ी नहीं थी। वहां एक आलीशान महल बना हुआ था, जिसके आंगन में उसके भतीजे खेल रहे थे। उसने जाकर अपनी बहन से कहा कि बहन ये सब क्या है? तब उसने अपने भाई को सारी बात बताई और बोली भाई जो तुम्हारे आंगन में कीचड़ है, वो कच्चे दूध से नहीं बल्कि भाभी के व्यवहार से जो मैं दिन रात रोती थी उन आंसुओं के पानी से हुआ कीचड़ है। माता-पिता के श्राद्ध पर भाभी ने कहा पीपल का पेड़ हिले तो आ जाना। बिना बुलाए मत आना। पीपल का पेड़ हिला नहीं तो हम गए नहीं और शाम को उन्होंने दो रोटी और चावल भिजवाए, जिसे मैंने गुस्से में झोपड़ी के ऊपर फेंक दिया था। माता पिता के आशीर्वाद तुम्हारे साथ और गंगा मइया की कृपा से ये सूखी रोटियां सोने में और चावल हीरे-मोतियों में बदल गए। जिसके प्रभाव से ये सब हुआ है।
भाई ने अपनी बहन से अपनी पत्नी की गलती की माफी मांगी। भाई ने धोधा बाई से घर लौट कर चलने को कहा तो धोधा बोली भाई गंगा मइया ने तुम्हारी रक्षा की तुम हमारी रक्षा करोगे, लेकिन अब हम यहीं रहेंगे। ये सुनकर भाई ने अपने माता-पिता को याद किया और बोला मेरे पितरों ने जैसे मेरी बहन और भांजों की रक्षा की, उनके दुख काटें, वैसे सबके काटना, सबकी रक्षा करना, कहानी को कहने वाले, सुनने वाले और हुंकार भरने वाले सब पर कृपा करना। बोलो पितर देव जी की जय हो!
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