Budh Pradosh Vrat Katha In Hindi.

बुध प्रदोष:
बुध प्रदोष व्रत की उपासना मुख्य रूप से शिवजी की कृपा और संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और ग्रह दोषों का भी निवारण होता है। भगवान शिव का यह व्रत बहुत ही कल्याणकारी माना गया है , इस व्रत को करने से सांसारिक जीवन के सभी कष्ट व पाप आदि से भी मुक्ति मिलती है। संतान की इच्छा रखने वाले जातक को प्रदोष व्रत में महादेव जी का अभिषेक करना चाहिए। महादेव और माता पार्वती की कृपा से जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है और हर माह के दोनों पक्षों में प्रदोष व्रत रखा जाता है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में । इस तरह साल में 24 प्रदोष व्रत आते हैं। माना जाता है कि त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनका गुणगान करते हैं। ऐसे समय में जो भी जातक भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत के होने से कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है और सभी ग्रह– नक्षत्रों का दोष दूर होता है। त्रयोदशी तिथि का व्रत सायंकाल के समय किया जाता है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है।
बुध प्रदोष व्रत कथा :
समतापुर नगर में मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत ही धनवान था। मधुसूदन का शादी बलरामपुर नगर की एक सुंदर लड़की संगीता से हुई थी । एक बार की बात है मधुसूदन अपनी पत्नी संगीता को विदा कराने के लिए अपनी ससुराल गया था उस दिन बुधवार था। जब मधुसूदन ने सास से अपनी पत्नी को विदा करने की बात कही तो उसके सास और ससुर ने कहा कि बेटा, आज बुधवार का दिन है और आज के दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा करना उचित नहीं है। मधुसूदन को इन बातों पर विश्वास नहीं था इसलिए उसने उनकी बात नहीं मानी और पत्नी को विदा कराकर चल दिया।

दोनों बैलगाड़ी से जा रहे थे। दो कोस की यात्रा के बाद उनकी बैलगाड़ी का एक पहिया टूट गया तो उन दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू कर दी। रास्ते में एक जगह पर संगीता को बहुत जोर से प्यास लगने लगी तो मधुसूदन ने उसको एक पेड़ के नीचे बैठा दिया और स्वयं पानी लेने चला गया। थोड़ी देर बाद जब वह पानी लेकर वापस आया तो आश्चर्य चकित रह गया। उसने देखा कि उसकी पत्नी के पास हुबहू उसी की शक्ल का एक व्यक्ति बैठा हुआ है। दोनों हंस-हंस का बातें कर रहे थे। संगीता ने जब मधुसूदन को देखा तो वह भी हैरान रह गई । वह भी हैरान रह गई। वह दोनों में अंतर नहीं कर पा रही थी। मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो ? मधुसूदन की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि अरे भाई! यह मेरी पत्नी संगीता है और मैं आज ही इसे विदा कराकर लाया हूं, लेकिन तुम कौन हो ? और मुझसे ऐसा प्रश्न क्यों कर रहे हो? मधुसूदन ने कहा कि यह मेरी पत्नी संगीता है, मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर पानी लेने के लिए गया था तुम जरूर कोई चोर या ठग हो जो ऐसी बातें कर रहे हो। इसपर दूसरा व्यक्ति बोला कि अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो मैं संगीता को प्यास लगने पर पानी लेने गया था और मैने पानी लाकर उसे पिला दिया है। इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे को झूठा बताकर आपस में लड़ने लगे।

दोनों को लड़ता हुआ देखकर वहां पर भीड़ इक्कठा हो गई। इतने में नगर के कुछ सिपाही भी वहां आ गए। सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए। सारी कहानी सुनने के बाद राजा भी कोई फैसला नहीं कर पाए। उन्होंने स्त्री से पूछा ‘उसका पति कौन है?’ वह किंकर्तव्य विमूढ़ हो गई। तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- ‘हे भगवान! हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्नी को विदा करा लिया। मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा।’
जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अंतर्ध्यान हो गया। भगवान शिव की अनुकम्पा से प्रभावित हो कर राजा ने उन दोनों को कारागार से मुक्त कर सम्मानपूर्वक विदा कर दिया। थोड़ी देर चलने के बाद उनकी बैलगाड़ी भी मिल गई और उसके पहिए भी जुड़ गए थे। पति-पत्नी सकुशल अपने घर पहुंच गए। उस दिन के बाद से पति-पत्नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत रखने लगे। अतः बुध त्रयोदशी व्रत हर मनुष्य को करना चाहिए। जो कोई भी स्त्री अथवा पुरुष विधिवत बुध प्रदोष का व्रत और पूजन करता है कथा सुनता है भगवान उनके सभी कष्ट दूर करके उनका जीवन खुशियों से भर देते हैं।
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