Aja Ekadashi Vrat Katha In Hindi.

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अजा एकादशी:

अजा एकादशी भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस व्रत में भगवान श्री विष्णु जी की पूजा और उपासना की जाती है। वैसे तो शास्त्रों में सभी एकादशियों को पुण्यदायी माना गया है। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा महत्व अजा एकादशी का है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत के करने से न सिर्फ सभी पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि उसको सभी कष्टों से मुक्ति भी मिल जाती है। अजा एकादशी के दिन गरुड़ की सवारी करते हुए भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु का प्रिय व्रत है और कृष्ण जन्माष्टमी के बाद यह पहली एकादशी है। अजा एकादशी व्रत के पूजा के समय आप को व्रत कथा का पाठ जरुर करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की तिथि को पड़ने वाले अजा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप नष्ट होते हैं, और उसे अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। भगवान श्री रामचंद्र ने भी अपने जीवन काल में अश्वमेध यज्ञ किया था, इसी यज्ञ के फल के कारण उन्हें लव कुश से मिलने का अवसर प्राप्त हो सका था।

अजा एकादशी व्रत कथा :

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व्रत कथा :

राजा हरिशचंद्र को तो सभी जानते ही हैं। अजा एकादशी में उन्ही का वर्णन किया गया है। राजा हरिशचंद्र बहुत ही सत्यवादी राजा थे। एक बार राजा हरिशचंद्र ने सपने में अपना राज्य ऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया। उसके अगले दिन जब वह दरबार में थे तो ऋषि विश्वामित्र उनके दरबार में आए तब राजा हरिशचंद्र ने सपने की बात को ध्यान में रखकर सचमुच में अपना राजपाट ऋषि को दान में दे दिया। तब ऋषि ने उनसे दक्षिणा में पांच सौ स्वर्ण मुद्राएं और देने को कहा। दक्षिणा में देने के लिए राजा हरिशचंद्र के पास पांच सौ स्वर्ण मुद्राएं नहीं थी क्योंकि राज्य अब उनका नहीं था अतः दक्षिणा देने के लिए उन्हें अपनी पत्नी, पुत्र और खुद को बेचना पड़ा।

राजा हरिशचंद्र को एक डोम ने खरीदा था। अतः डोम ने राजा हरिशचंद्र को शमशान घाट में नियुक्त किया। डोम ने राजा हरिशचंद्र को यह कार्य सौंपा कि वह मृतकों के संबंधियों से कर लेकर शवदाह करें। राजा हरिशचंद्र को शमशान घाट पर काम करते हुए बहुत वर्ष बीत गए तब अचानक ही एक दिन उनकी भेंट गौतम ऋषि से हो गई। गौतम ऋषि के पूछने पर राजा हरिशचंद्र ने उनको अपनी सारी आपबीती कह सुनाई। तब गौतम ऋषि ने राजा को अजा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। गौतम ऋषि की बात सुनकर राजा ने अजा एकादशी व्रत करना प्रारंभ कर दिया।

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इसी बीच उनके पुत्र रोहताश को सांप के काटने से मृत्यु हो गई। राजा हरिशचंद्र की पत्नी अपने पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए शमशान घाट पर लेकर आई तो राजा ने उससे भी शमशान का कर मांगा, परंतु उसके पास कर चुकाने के लिए कुछ भी नहीं था अतः उसने अपनी चुनरी का आधा भाग देकर शमशान का कर चुकाया । तभी अचानक आकाश में बिजली चमकी और श्री विष्णु जी प्रकट हो कर बोले कि हे राजन्! तुमने सत्य को अपने जीवन में धारण करके सबके लिए उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किया है। तुम्हारी कर्तव्य निष्ठा धन्य है। तुम इतिहास में राजा हरिशचंद्र के नाम से मशहूर होगे और सदा अमर रहोगे। भगवान श्री विष्णु जी की कृपा से उनका पुत्र पुनः जीवित हो गया। वास्तव में ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब किया था। परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और अन्त समय में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को चले गए। व्रत में व्रती को इन चीजों का पालन करना चाहिए:–

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर घर के मंदिर में दीपक जलाएं।

भगवान विष्णु जी का गंगा जल से अभिषेक करें। • भगवान श्री विष्णु जी को पुष्प और तुलसी दल चढ़ाएं, तुलसी भगवान को बहुत प्रिय है।

एकादशी व्रत में रात्रि जागरण करें और सुंदर सुंदर भजनों से प्रभु का गुणगान करें।

भगवान श्री विष्णु जी और मां लक्ष्मी जी की पूजा करें।

इस दिन चावल नहीं खाना चाहिए।

भगवान को भोग लगाएं और इस बात का ध्यान रखें कि उसमें तुलसी दल जरूर डालें। क्योंकि बिना तुलसी दल के भगवान भोग स्वीकार नहीं करते हैं।

घर-परिवार, पास–पड़ोस में किसी भी तरह के वाद विवाद को करने से बचें।

ज्यादा से ज्यादा भगवान का ध्यान करें।

ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दान देकर विदा करें।

रात्रि में फलाहार करें।

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