Sri Krishn Chathi Ki Katha

श्री कृष्ण छठी:
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के जन्म की कथा सुनना फलदायी माना जाता है। जैसे कि हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों का बहुत महत्व है, 16 संस्कारों की शुरुआत गर्भ से शुरू हो जाती है। फिर जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार पूरे किए जाते हैं। ये संस्कार मनुष्य और देव दोनों के लिए होता है। जैसे जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके जन्म के 6 दिन बाद बच्चे की छठी मनाते हैं, वैसे ही भगवान श्री कृष्ण जी की भी छठी मनाई जाती है। इस दिन लोग लड्डू गोपाल की पूजा करते हैं और फिर कान्हा के संस्कार को पूरा करते हैं। कान्हा जी की छठी भी जन्माष्टमी के छठे दिन ही मनाई जाती है। इस दिन लोग घरों में कढ़ी चावल बनाकर कान्हा जी को भोग लगाते हैं और फिर उसे सभी को प्रसाद के रूप में बांटते हैं। छठी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर साफ वस्त्र धारण करें। श्री कृष्ण के पसंदीदा पंचामृत से लड्डू गोपाल को स्नान कराया जाता है। स्नान करवाते समय लड्डू गोपाल को मुख की ओर से स्नान कराएं। उसके बाद शंख में गंगाजल भरकर उससे स्नान कराएं, उसके बाद शंख में गंगाजल भरकर उससे स्नान कराएं उसके बाद भगवान को पीले रंग के वस्त्र पहना कर उनका विधिवत श्रृंगार करें। कृष्ण जी को छठी में काजल लगाया जाता है फिर मक्खन मिश्री का भोग लगाया जाता है। इसके बाद कढ़ी चावल का भोग लगाकर सबको प्रसाद दिया जाता है।
छठी क्यों मनाई जाती है?
पौराणिक मान्यता के अनुसार हिंदू धर्म में बच्चे के जन्म के छह दिन बाद षष्ठी देवी की पूजा का विशेष महत्व है। षष्ठी देवी की कृपा से राजा प्रियव्रत का मृतपुत्र दोबारा जीवित हो गया था। पुराणों में षष्ठी देवी को बच्चों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। कहते हैं कि इनकी पूजा करने से नवजात शिशु पर कोई आंच नहीं आती।
श्री कृष्ण छठी की कथा:

भगवान श्री कृष्ण के एक परम भक्त कुंभनदास थे। उनका एक पुत्र था रघुनन्दन । कुंभनदास के पास श्री कृष्ण भगवान का एक चित्र था जिसमें भगवान बांसुरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा ही भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे रहते थे और उनकी पूजा आराधना किया करते थे। एक बार कुंभनदास को वृन्दावन से भागवत के लिए बुलाया गया। पहले तो कुंभनदास ने जाने से मना कर दिया लेकिन फिर सबके कहने पर वह वृन्दावन जाने के लिए राजी हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्री कृष्ण की पूजा करेंगे और फिर भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे इससे उनका पूजा का नियम भी नहीं टूटेगा । भागवत में जाने से पहले उन्होंने अपने पुत्र को बुलाकर कहा कि मैंने ठाकुर जी का भोग तैयार कर दिया है तो वह ठाकुर जी को भोग लगा दे ऐसा कहकर कुंभनदास भागवत कथा के लिए चले गए।

कुंभनदास के जाने के बाद रघुनंदन ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे प्रार्थना की कि वे आकर भोग लगा लें। रघुनंदन को लगा कि ठाकुर जी आयेंगे और अपने हाथों से भोजन ग्रहण करेंगे। लेकिन जब उसने देखा कि भोग वैसे ही रखा हुआ है तो वह दुखी हो गया और जोर जोर से रोने लगा। उसने रोते रोते भगवान श्री कृष्ण से भोग लगाने की विनती की। उसका रोना देखकर भगवान श्री कृष्ण एक बालक के रूप में आए और भोजन करने के लिए बैठ गए। जब कुंभनदास जी वापस आए तो उन्होंने अपने पुत्र से भोग लगाने के बारे में पूछा तब रघुनंदन ने खुश होकर बताया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया है। कुंभनदास ने सोचा कि रघुनंदन झूठ बोल रहा है।
कुंभनदास जी रोज भागवत कथा के लिए जाते और उनके आने तक सारा प्रसाद खत्म हो जाता था। इस प्रकार कुंभनदास को लगा कि अब उनका पुत्र उनसे रोज झूठ बोलने लगा है। सच्चाई का पता लगाने के लिए एक दिन कुंभनदास ने भोग के लड्डू बनाकर थाली में रख दिए और खुद दूर से छिपकर देखने लगे। रोजाना की तरह ने रघुनंदन ने ठाकुर जी को आवाज दी भोग लगाने का आग्रह किया। हर दिन की ठाकुर जी एक बालक के रूप में आये और लड्डू खाने लगे। कुंभनदास ने इस घटना को देखा तो अपने को रोक नहीं पाए और तुरंत वहां आ गए और ठाकुर जी के चरणों में गिर पड़े।

उस समय ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू जाने ही वाला था। लेकिन ठाकुर जी उस समय वहीं पर जमकर रह गए। तभी से लड्डू गोपाल के इस रूप की पूजा की जाने लगी। छठी के दिन इस कथा को पढ़ने और सुनने से भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न होते हैं। और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
इस दिन बांसुरी जरूर लानी चाहिए। छठी के दिन भगवान के भोग को अपने परिवार और दोस्तों के साथ ग्रहण करें। माता पिता और बुजुर्गों की सेवा का संकल्प लें। झूठ न बोलें। मांस मदिरा का सेवन न करें। घर से किसी को भी खाली हाथ न जाने दें।