Gaaj Mata Ki Kahani In Hindi.
गाज माता:
सन्तान सुख की प्राप्ति हेतु करें गाजमाता व्रत:

भादों के महीने में की जाने वाली गाज माता की पूजा की जाती है और व्रत के समय गाज माता की कहानी सुनी जाती है। गाज माता की कहानी सुनने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और गाज माता की कृपा सदैव बनी रहती है। आज हम आपके लिए गाज माता की कहानी लेकर आए हैं।
गाज माता की कहानी:
एक राजा और रानी थे जिन्होंने अपने पुत्र का विवाह किया किंतु उसे संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ। एक दिन रानी अपनी सहेली के घर गई हुई थी तो सहेली उस समय गाज माता की कहानी सुन रही थी। रानी ने अपनी सहेली के साथ गाज माता की कहानी सुनी और उस दिन संकल्प किया कि यदि मेरी बहू के गर्भ ठहर जाएगा तो मैं सवा सेर का रोट चढ़ाऊंगी। गाज माता का दिन आया तब रानी ने अपनी बहू को 8 तार का धागा हल्दी में रंग के दिया और कहा कि इसे मंगलसूत्र के साथ बांध लो। बहू ने वैसा ही किया लेकिन जब रानी के बेटे ने इसे देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा। उसने कहा कि इतने बेशकीमती और हीरे मोती जड़े हुए गहनों के साथ यह धागा क्यों बांध रखा है। तब बहू ने कहा कि यह गाज माता का डोरा है।

राजकुमार ने कहा कि तुम इतनी समझदार हो कर भी ऐसी बातें करती हो और बहू का गाज माता का डोरा उतार कर रख दिया। रानी ने गाज माता के व्रत के लिए बहू के नाम का एक अलूणा मोटा रोट बनाया। जब राजकुमार ने अपनी पत्नी को मोटा रोट खाते देखा तो उसने कहा कि अभी बच्चा छोटा है और तुम यह रोट खाओगी तो उसका पेट दुखेगा इसलिए तुम यह रोट मत खाओ। बहू ने वैसा ही किया और वह रोट नौकरानी को दे दिया। जिससे गाज माता अत्यंत रूष्ट हो गई उसी समय तेज तूफान और आंधी चलने लगी और बादल गरजने लगे। गाज माता गरजती हुई आई और बच्चे को पालने सहित उठा ले गई और भीलनी के आंगन में बच्चे को छोड़ दिया। भीलनी के भी कोई बच्चा नहीं था इसलिए वह उस बच्चे को देखकर बहुत खुश हो गई।

उधर महल में हाहाकार मच गया और सभी लोग बच्चे को ढूंढने लगे। रानी ने सोचा कि मैने रोट नहीं चढ़ाया इस कारण यह सब हुआ और बहू ने सोचा कि मैंने गाज माता का डोरा खोल दिया और रोट नहीं खाया इस कारण यह सब हुआ। वे दोनों गाज माता से क्षमा मांगने लगी और गाज माता की पूजा करने लगी महारानी ने सवा मन का रोट बनाकर गाज माता को चढ़ाया।
गाज माता से क्षमा मांगने और पूजा अर्चना करने से गाज माता प्रसन्न हुई और माता ने भीलनी के मन में विचार डाला तब भीलनी सोचने लगी कि यह जिसका बच्चा होगा वह दुखी हो रहा होगा इसलिए वह बच्चे को लेकर महल की तरह आई तो पता चला कि यह तो राजकुमार का पुत्र है उसने वह बच्चा लाकर महारानी को दे दिया। रानी ने भीलनी से कहा कि यह सब गाज माता के कोप के कारण हुआ था।
भीलनी ने गाज माता के बारे में पूछा तो महारानी ने सब कुछ विस्तार से बता दिया। भीलनी ने कहा कि यदि मेरे पुत्र हुआ तो मैं गाज माता को रोट चडाऊंगी। और कुछ दिन पश्चात ही भीलनी के गर्भ से एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया । हे गाज माता! जैसा रानी और भीलनी को फल दिया वैसा सभी को देना और जैसा रानी पर कोप किया वैसा किसी पर मत करना!
गाज माता की कहानी कहने वाले को, गाज माता की कहानी सुनने वाले को, हुंकार भरने वाले को और पूरे परिवार के दुखों को दूर कर देना🙏
बोलो गाज माता की जय🙏
गाज माता की दूसरी कहानी:

एक साहूकार दंपति थे, उनके एक बेटा–बहू थे। साहूकार के बेटे की शादी को कई साल बीत चुके थे, लेकिन उनके कोई भी संतान नहीं हुई थी। साहूकार ने अपने बेटा–बहू को बहुत जगह दिखाया और टोना–टटका भी करवाया, जगह जगह देवी देवताओं को धोक भी दिलवाए लेकिन उसे सब कहीं से निराशा ही हाथ लगी। एक दिन जब वह साहुकारिनी अपने पड़ोसी के यहां गई थी। उसने देखा कि कुछ औरतें व्रत कर के कथा सुन रही थीं। उन्हे देख कर साहुकारिनी ने पूछा कि आप लोग ये क्या कर रही हैं, किसकी पूजा कर रही हैं और इसको करने से क्या फायदा होगा। औरतों ने कहा कि बहन हम लोग गाजमाता की पूजा कर रहे हैं, और उनकी कथा सुन रहे हैं। इनकी पूजा करने से निर्धन को धन, निसंतान को संतान मिलती है और जिनका विवाह ना हो रहा हो उनका विवाह हो जाता है।
गाजमाता सबका भला करती हैं अन्न धन से भंडार भरती हैं। तब साहुकारिनी ने कहा कि अगर मेरी बहु की गोद भी भर जाए तो मैं भी सवा पाव का रोट गाजमाता को चढ़ाऊंगी। साहुकारिनी ने वहीं बैठकर संकल्प लिया और गाजमाता की पूजा करी।कुछ समय के बाद उसकी बहू को गर्भ ठहर गया। उस समय साहुकारिनी ने कहा कि हे गाजमाता! जब मेरे पोता होगा तो मैं सवा ढ़ाई किलो का रोट चढ़ाऊंगी। कुछ समय बाद साहुकारिनी के घर पोता हो गया, उसका मुंडन भी हो गया, उसकी शादी भी हो गई और उसके बच्चे भी हो गए लेकिन साहुकारिनी ने ना तो गाजमाता का व्रत किया और ना ही पूजा करी और न ही भोलारी चढ़ाई।

एक रात को गाजमाता ने साहुकारिनी के सपने में आकर कहा कि हे पुत्री! तूने संकल्प लिया था कि जब तेरे पोता हो जायेगा तो तू मेरा व्रत करेगी, पूजा करेगी और मेरी भोलारी चढ़ाएगी। लेकिन पुत्री तूने ना तो मेरी पूजा की, ना व्रत किया और ना ही तूने भोलारी चढ़ाई है तू मेरी पूजा से विमुख हुई है। साहुकारिनी की नींद अचानक खुल जाती है और वह सारी बात साहूकार को बताती है। साहूकार ने कहा कि जैसा तुमने संकल्प लिया था वैसा ही पूरा करो। सुबह उठते ही साहुकारिनी ने पूजा की और भादवां मास की अनंत चतुर्दशी को अपनी बहु के साथ व्रत किया। गाजमाता के नाम का डोरा लिया और सवा पांच किलो का रोट बनाकर गाजमाता को चढ़ाया और अपनी गलती की माफी मांगी। शाम को साहुकारिनी का बेटा वापस आया तो उसने अपनी पत्नी के गले में गाजमाता के नाम का डोरा देखा तो उसे उतार कर फेंक दिया।
जब साहूकार का बेटा खाना खाने बैठा तो अपनी पत्नी की थाली में बिना नमक का रोट देखा तो पूछा कि यह क्या है तब उसकी पत्नी ने कहा कि आज मैने गाजमाता का व्रत किया है इसलिए आज मैं बिना नमक का रोट और खीर खाऊंगी। साहूकार के बेटे ने कहा कि तुम्हे यह रोट खाने की कोई जरूरत नहीं है। हमारा बच्चा अभी छोटा है और तुम्हारा दूध पीता है, अगर तुम यह रोट खाओगी तो उसका पेट दुखेगा। साहुकारिनी की बहू ने अपना रोट गाय को खिला दिया और अपना व्रत खोल दिया और नमक का खाना खा लिया, इससे गाजमाता क्रोधित हो गईं।

उस समय एकदम से भयानक आंधी आई और गाजमाता गाजती, गरजती आईं और साहुकारिनी के पोते को पालने सहित लेकर उसी गांव में भीलनी के आंगन में रख आईं। भीलनी के कोई औलाद नहीं थी। भीलनी भी गाजमाता का व्रत और पूजन करती थी। उसने जब अपने आंगन में पालने सहित बच्चे को देखा तो वह बहुत खुश हो गई। दूसरी तरफ साहूकार का बेटा और बहू जोर जोर से विलाप करने लगीं। साहुकारिनी ने गाजमाता से गुहार लगाई और प्रार्थना की कि हे माता! मुझसे या मेरी बहु से कोई गलती हो गई है तो उसे क्षमा करें। तब गाजमाता ने कहा कि हे पुत्री तुम्हारी बहू ने मेरे नाम का डोरा उतार कर फेंक दिया और मेरे व्रत को खंडित किया है। मेरे प्रसाद के रोट को गाय को खिलाकर उसने नमक वाला खाना खा कर व्रत तोड़ा है। इसीलिए उसे मेरा श्राप लगा है। लेकिन तेरा पोता सुरक्षित है, तेरा पोता एक भीलनी के घर में है तुम जाकर उससे अपना पोता ले लो। तब साहुकारिनी भीलनी के घर गई और अपना पोता मांगा। भीलनी ने कहा कि अगर एक यह बच्चा तुम्हारा है तो कोई निशानी बताओ। तब साहुकारिनी ने कहा कि मेरे पोते के गले में जो लाकेट है उसमे गाजमाता की तस्वीर है। भीलनी गाजमाता की परम भक्त थी उसने बच्चे के गले में गाजमाता का लाकेट देखा तो उसने खुशी खुशी साहिकारिनी का पोता उसे दे दिया। साहिकारिनी ने भीलनी को दूधो नहाओ, पूतो फलो का आशीर्वाद दिया और बहुत सारा धन उपहार में दिया। उसके बाद साहूकार दंपति ने अपने बेटा बहू के साथ गाजमाता का व्रत और पूजन पूरे विधि विधान से किया। और सवा मन का रोट गाजमाता को भोग में चढ़ाया।
हे गाजमाता जैसे आपने साहुकारिनी की बहू की गोद भरी वैसी ही सबपे कृपा करना।
बोलो गाजमाता की जय🙏