Skand Shashthi Vrat Katha In Hindi.

स्कंद षष्ठी:
दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का बहुत महत्व है। सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्द षष्ठी का व्रत किया जाता है। दक्षिण भारत में लोग इस तिथि को एक उत्सव के रूप में बहुत ही श्रध्दा से मनाते हैं। कहते हैं इस दिन संसार में हो रहे कुकर्मों को समाप्त करने के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ था। स्कंद, मुरुगन, सुब्रमण्यम यह सभी नाम भगवान कार्तिकेय के हैं। कहा जाता हैं कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को उनकी आंखों की ज्योति प्राप्त हुई थी। इस दिन यह भी कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत के मृत शिशु के प्राण भी लौट आए थे। भगवान कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं। वे षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा से जीवन में हर तरह की बाधाएं दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना से ये व्रत किया जाता है। इस दिन व्रत व पूजा करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
इस दिन कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने का भी विशेष महत्त्व है। इस दिन दान देने से विशेष लाभ मिलता है। स्कंद देव की स्थापना करके अखंड दीपक जलाए जाते हैं। कार्तिक भगवान को स्नान करवा कर, नए वस्त्र पहनाकर पूजा की जाती है। इस दिन भगवान को भोग लगाया जाता है। स्कंद षष्ठी पूजन में तामसिक भोजन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य आवश्यक होता है। इस दिन पूरे मन से भगवान कार्तिकेय का पूजन करने से जीवन के अनेक प्रकार के कष्ट दूर होते हैं।

स्कंद षष्ठी व्रत कथा:
राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती यज्ञ में कूदकर भस्म हो गईं थी। तब शिव जी तपस्या में लीन हो गए, लेकिन उनके लीन होने से सारी सृष्टि शक्तिहीन होने लगी। इस परिस्थिति का फायदा उठाते हुए तारकासुर ने देव लोक में आतंक मचा दिया और देवताओं को पराजित कर चारों तरफ भय का वातावरण बना दिया। तब सभी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और उनसे हल पूछा। तब ब्रह्मा जी ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा। लेकिन इस समय तो भगवान शिव माता सती के वियोग में समाधि में लीन थे।
तब सभी देवताओं और इंद्र ने शिवजी समाधि से जगाने का प्रयत्न किया और इसके लिए उन्होंने भगवान कामदेव की मदद ली। कामदेव अपने बाण से शिव पर फूल फेंकते हैं जिससे उनके मन में माता पार्वती के लिए प्रेम की भावना विकसित हो । इससे शिवजी की तपस्या भंग हो जाती हैं और वे क्रोध में आकर अपनी तीसरी आंख खोल देते हैं। इससे कामदेव भस्म हो जाते हैं। तपस्या भंग होने के बाद वे माता पार्वती की तरफ खुद को आकर्षित पाते हैं। इसके बाद शिवजी का विवाह माता पार्वती से हो जाता है। शुभ मुहूर्त में विवाह होने के बाद कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने ताड़कासुर का वध किया और देवताओं को उनका निवास स्थान वापस दिला देते हैं। कार्तिकेय भगवान के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा मुख्यतः भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में होती है। भगवान स्कंद के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में ही स्थित हैं।

स्कंद षष्ठी व्रत करने की विधि:
स्कंद षष्ठी के दिन सुबह जल्दी उठें और घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद स्नान ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें। पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से करें। अंत में आरती करें। शाम को दोबारा कीर्तन-भजन पूजा के बाद आरती करें। इसके बाद फलाहार करें। इस दिन ब्राह्मण भोज के बाद कंबल, गरम कपड़े दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।