Bitthal Bhagwan Ke Darshan –Sai Baba Ki Kahani.
बिट्ठल भगवान के दर्शन –साईं बाबा की महिमा की कहानी

आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं साईं बाबा के चमत्कार और उनकी महिमा की एक कहानी! कैसे साईं बाबा ने अपने भक्त को बिट्ठल भगवान के दर्शन कराए, एक भक्त की आस्था और विश्वास की कहानी।
दासगणु साईं बाबा का एक परम भक्त था। उसका साईं बाबा पर बहुत ही अटूट विश्वास था। दासगणु एक सिपाही था और उसे उसके क्षेत्र के एक खूंखार डकैत खन्ना भील को पकड़ने का काम सौंपा गया था। मगर दासगणु खन्ना भील को पकड़ने के बजाय खुद उसके चंगुल में फंस गया। जब वह खन्ना भील की कैद में था उसने मन ही मन संकल्प लिया कि इस गिरोह के चंगुल से अगर मैं छूट गया तो मैं अपना सारा जीवन साईं बाबा की भक्ति में लगा दूंगा। कुछ दिनों बाद साईं बाबा की कृपा से डकैतों ने उसे छोड़ दिया। इस प्रकार खन्ना भील के गिरोह से छूटने के बाद कुछ समय बाद दासगणु ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी और साईं बाबा की भक्ति में लीन हो गया।
साईं बाबा का कहना था कि वो अपने भक्तों से अपने प्राणों की तरह प्यार करते हैं और उनके भक्त भी उन्हें उतना ही अधिक प्यार करते हैं। जिस प्रकार मां अपने बच्चे से प्यार करती है उसी प्रकार से मैं भी अपने भक्तों से प्यार करता हूं, और जैसे एक बच्चा अपनी मां के बिना नहीं रह सकता है वैसे ही मेरे भक्त भी मेरे बिना नहीं रह सकते हैं। जब भी कभी बाबा बाहर जंगल में घूमने के लिए जाते थे और उनको वापस लौट कर आने में देर हो जाती थी तो उनके सभी भक्त परेशान हो जाते थे और उनके ढूंढने के लिए निकाल पड़ते थे।
दासगणु भी साईं बाबा का परम भक्त बन गया था। वह उनके संदेश को चारों ओर फैलाने के लिए उनका एक चित्र लेकर निकल पड़ा। दासगणु जगह–जगह बाबा के चित्र को लगाकर उनकी स्तुति गाया करता था और हरिकथा का गान भी किया करता था। जब भी दासगणु बाबा का चित्र लगाकर स्तुति करता तो उसके चारों ओर लोगों की भीड़ इक्कठी हो जाती थी और लोग उसके विचारों को सुनकर उसकी ओर आकर्षित हो जाते और बहुत ध्यान से उसकी कथा को सुनते थे।
एक बार की बात है दासगणु साईं बाबा के चरणों में प्रणाम करके बोला –हे साईं बाबा! मेरी इच्छा पंढरपुर जाने की है। मैं बिट्ठल भगवान के दर्शन करना चाहता हूं। साईं बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा कि दासगणु! अगर तुम भगवान बिट्ठल के दर्शन करना चाहते हो तो उसके लिए तुम्हे पंढरपुर जाने की क्या आवश्यकता है? भगवान बिट्ठल तो यहीं हैं।”। तब दासगणु ने चकित होकर बाबा से पूछा कि बाबा! अगर बिट्ठल भगवान यहीं हैं तो मैं उन्हे देख क्यों नहीं पा रहा हूं? बाबा बोले–दासगणु! सच्चे दिल से भगवान बिट्ठल का नाम लो और फिर आंखें खोल कर देखो।”
दासगणु ने भगवान बिट्ठल को सच्चे हृदय से याद किया और जब उसने अपनी आंखें खोली तो उसकी आंखे आश्चर्य से फैल गई। उसके सामने साईं बाबा नहीं बल्कि साक्षात भगवान बिट्ठल बैठे हुए थे। दासगणु भाव–विभोर होकर उनके चरणों में गिर गया। लेकिन जब उसने अगले ही क्षण अपनी आंखें खोली तो उसके सामने भगवान बिट्ठल नहीं बल्कि साईं बाबा बैठे दिखाई दिए। दासगणु साईं बाबा की महिमा समझ गया और उनका गुणगान करने लगा। उसने झुककर बाबा के चरणों में प्रणाम किया और उसी दिन से उनकी प्रगाढ़ भक्ति में लीन रहने लगा। एक दिन की बात है दासगणु साईं बाबा के पास बैठा धर्म संबंधी बातें कर रहा था। वह बाबा से सवाल पूछता और बाबा उसके सवालों के सही जवाब देकर उसे संतुष्ट कर रहे थे। जब दासगणु किसी काम से बाहर गया तो उसकी इच्छा इशोपनिषद् का ज्ञान प्राप्त करने की हुई। इसके लिए उसने अनेकों लोगों से निवेदन किया कि वे उसे इशोपनिषद् का अर्थ बताएं परंतु किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी।
अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए दासगणु साईं बाबा के पास आया और बोला –बाबा! मेरी इच्छा इशोपनिषद् का ज्ञान प्राप्त करने की है, इसके लिए मैने अनेकों लोगों से निवेदन किया मगर किसी ने भी मेरी शंका का समाधान नहीं किया। अतः अब मैं आपके पास आया हूं और मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है कि आप मेरी इस शंका का समाधान अवश्य कर देंगे। साईं बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा –कि हे दासगणु! अगर तुम्हारी इच्छा इशोपनिषद् का ज्ञान प्राप्त करने की है तो तुम विले पार्ले में काका साहब दीक्षित के घर जाओ, वहां तुम्हें एक नौकरानी मिलेगी जो तुम्हे इशोपनिषद् का सही सही अर्थ बता देगी। वहां पर मौजूद अनेकों विद्वान बाबा की और दासगणु की बातें सुनकर चौंक पड़े। उन्हे पता था कि जब बड़े– बड़े विद्वान इशोपनिषद् की व्याख्या नहीं कर पा रहे हैं तो वह अनपढ़ नौकरानी कैसे इशोपनिषद् का सही अर्थ दासगणु को समझा सकती है।
दासगणु को साईं बाबा पर पूरा भरोसा था और उसकी उनमें गहरी आस्था भी थी। अतः जो बात साईं बाबा ने उसे बताई थी, उसके अनुसार ही वह काका साहब दीक्षित जी के घर जा पहुंचा। वहां पहुंचकर उसने देखा कि एक गरीब सी लड़की जिसकी पोशाक फटी पुरानी सी है, मस्ती में कुछ शब्द गुनगुना रही है और बहुत खुश हो रही है। दासगणु ने अपने मित्र के माध्यम से उस लड़की के लिए एक नई साड़ी भिजवाई। उस लड़की ने वह साड़ी पहन ली और फिर अपने काम में लग गई। वह लड़की यह नई साड़ी पहन कर बहुत खुश थी। अगले दिन जब वह फिर काम करने के लिए आई तो उसने नई साड़ी नहीं बल्कि अपनी वही पुरानी पोशाक पहन रखी थी और जितनी खुश वह नई साड़ी में थी उतनी ही खुश वह अपनी पुरानी पोशाक में लग रही थी। उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन ना देखकर दासगणु आश्चर्य चकित था।
दासगणु ने मन ही मन बाबा का स्मरण किया और समझने की कोशिश की कि आखिर यह सब क्या है? इस प्रकार उसे थोड़ी देर बाद ही ज्ञान हो गया कि मनुष्य को सुख और दुख दोनों ही स्थितियों में खुश रहना चाहिए। तभी मनुष्य को परम आनंद प्राप्त हो सकता है। यही इशोपनिषद् का सही ज्ञान था। दोस्तों आप सभी को कहानी पसंद आई हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।