Vat Savitri Vrat Katha.

वट सावित्री व्रत:
ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत को बड़ सायत अमावस भी कहा जाता है। बड़ सायत अमावस्या को बड़ के पेड़ की पूजा की जाती है। सावित्री से यमराज वरदान मांगने को कहा था, जिसमें एक वरदान ऐसा भी था जिसने यमराज को भी फंसा दिया था और उन्हें हारकर सत्यवान के प्राण लौटने पड़े थे। इस व्रत में मौली, जल, रोली, चावल, गुड़, भीगा हुआ चना, फूल, सूत,मिलाकर बड़ के पेड़ पर लपेटते हैं और बड़ सायत अमावस की कहानी कही जाती। भीगे हुए चने में रुपए रखकर सीधा निकालते हैं और फिर सास के पैर छूकर उनको सीधा देते हैं।
वट सावित्री व्रत की कथा:

भ्रद्र देश में अश्वपति नाम का राजा राज्य करता था। राजा के कोई भी संतान नहीं थी। राजा ने बड़े–बड़े पंडितों को बुलाया और कहा कि मेरे कोई संतान नहीं है अतः आप लोग कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे कि मुझे भी संतान का सुख प्राप्त हो सके। पंडितों ने कहा कि हे राजन्! आपकी कुंडली में एक पुत्री योग है, राजा ने खूब यज्ञ और हवन आदि कराए जिसके प्रभाव से उसकी पत्नी गर्भवती हो गई और कुछ समय पश्चात उसके घर में एक कन्या ने जन्म लिया। पंडितों ने जब उसकी जन्मपत्री देखी तो राजा से बोले कि हे राजन्! जिस दिन आपकी कन्या बारह वर्ष की होगी उसी दिन उसके विधवा हो जाने का योग है। यह सुनकर राजा और रानी बहुत दुःखी हो गए उन्होंने पंडितों से उसका निवारण पूछा तो पंडितों ने कहा कि आप कन्या से पार्वती जी और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना। उस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। पहले के समय में शादी बहुत कम उम्र में हो जाती थी।
जब सावित्री थोड़ा बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया गया। सावित्री के सास–ससुर अंधे थे। सावित्री उनकी बहुत सेवा करती थी। सत्यवान जंगल से लकड़ियां काट कर लाया करता था। सावित्री को यह बात मालूम थी कि जिस दिन वह बारह वर्ष की होगी उसी दिन वह विधवा हो जायेगी। जिस दिन सावित्री बारह वर्ष की हुई ,उस दिन अपने पति से कहने लगी कि आज मुझे भी अपने साथ ले चलिए। सत्यवान ने कहा कि अगर तुम मेरे साथ चलोगी तो मेरे माता और पिता की सेवा कौन करेगा? अगर वह कह देंगे तो मैं तुम्हे अपने साथ ले चलूंगा। सावित्री ने अपने सास–ससुर के पास जाकर कहा कि मेरा आज जंगल देखने का मन कर रहा है यदि आप इजाजत दे दें तो मैं आज जंगल देखने चली जाऊं। उसके सास और ससुर बोले कि बहुत अच्छी बात है बहू जाओ तुम जंगल देख आओ।

जंगल में पहुंचकर सावित्री तो लकड़ी काटने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में लेटकर सो गया। उस पेड़ में एक सांप रहता था, उसने सत्यवान को काट लिया। सावित्री अपने पति को गोद में लिटाकर विलाप करने लगी। उसी समय महादेव जी और पार्वती जी उधर से निकल रहे थे। उनकी नजर सावित्री पर पड़ी तो उन्होंने सावित्री से प्रश्न किया कि पुत्री क्या बात है तुम किस कारण से रो रही हो? सावित्री ने रोते हुए उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया और उनके पैर पकड़ कर बोली कि हे भगवन्! आप मेरे पति को जीवित कर दीजिए। महादेव जी और पार्वती जी ने सावित्री से कहा कि हे पुत्री! आज बड़ सायत है तू उसकी पूजा करेगी तो तेरा पति जीवित हो जायेगा। यह सुनकर सावित्री बहुत प्रेम से बड़ की पूजा करने लगी। उसने बड़ के पत्तों के गहने बनाकर पहने तो वह गहने हीरे और मोती के बन गए। इतने में धर्मराज के दूत आ गए और उसके पति को ले जाने लगे। सावित्री ने उसके पैर पकड़ लिए और उनसे अपने पति को जीवित कर देने के लिए प्रार्थना करने लगी। धर्मराज ने मैं तेरे पति को जीवित नहीं कर सकता तू मुझसे वरदान मांग ले। सावित्री ने कहा कि मेरे मां बाप के पुत्र नहीं है वे पुत्रवान हो जाएं, धर्मराज ने कहा कि सत्यवचन,हो जायेगा। सावित्री ने फिर कहा कि मेरे सास–ससुर अंधे हैं उनके नेत्रों में प्रकाश भर दो।” धर्मराज ने कहा तथास्तु! पर सावित्री ने उनके पैरों को फिर भी नहीं छोड़ा।

धर्मराज ने कहा–अब तुझे और क्या चाहिए? सावित्री ने कहा हे धर्मराज! मुझे सौ पुत्र हो जाएं।” धर्मराज ने कहा तथास्तु! फिर वह सत्यवान को ले जाने लगे तो सावित्री ने कहा कि हे भगवन् अगर आप मेरे पति को ले जायेंगे तो मेरे पुत्र कहां से होंगे? धर्मराज ने कहा कि हे सती! तेरा सुहाग तो नहीं था, परन्तु बड़ सायत अमावस करने से और पार्वती जी की पूजा करने से तेरा पति जीवित हो जायेगा। इस प्रकार बड़ सायत अमावस का व्रत करने से और पार्वती जी की पूजा करने से सावित्री ने अपने पति को जीवित करा लिया। सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जेठ की अमावस्या आयेगी तब बड़ के पेड़ की पूजा करना, और बड़ के पत्तों के गहने बनाकर पहनना और बायना निकालना।
हे महाराज! जैसे बड़ सायत अमावस ने सावित्री को उसका सुहाग दिया उसी प्रकार सबको देना। जो भी इस कहानी को सुने–सुनाए उसकी सभी मनोकामनाएं को पूरा करना।