Avsan Maiya Ki Devrani/Jethani Ki Kahani.

अवसान मईया की देवरानी और जेठानी की कहानी:
किसी नगर में एक देवरानी और जेठानी रहती थीं। उन दोनों का आपस में बहुत प्यार था। देवरानी और जेठानी दोनों साथ में गंगा नहाने को जाती थीं। एक बार जब वह दोनों जब गंगा नहाकर वापस आ रही थीं तो उन्होंने देखा कि रास्ते में एक जगह अवसान मईया की पूजा हो रही है तो दोनों वहां पहुंच कर देखने लगीं। जिन लोगों के यहां पूजा हो रही थी वो उन दोनों से कहने लगे कि आप दोनों भी अवसान मईया की पूजा में शामिल हो जाइए, ये सुनकर वो दोनों खुशी से पूजा में शामिल हो गईं। पूजा समाप्त होने पर दोनों ने प्रसाद ग्रहण किया और फिर जिनके यहां पूजा हो रही थी उनसे पूछा कि बहन यह किस माता की पूजा है और इसको करने से क्या होता है, और इसकी पूजा की विधि क्या है? तब उन स्त्रियों ने बताया कि यह अवसान मईया की पूजा है और इसको करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अवसान मईया सारे दुःख दूर कर के सुख प्रदान करती हैं। उन स्त्रियों ने कहा कि इस पूजा को करने के बाद प्रसाद वितरित करना चाहिए।
देवरानी और जेठानी दोनों के कोई पुत्र नहीं था। देवरानी ने जेठानी से कहा कि दीदी हमें भी अवसान मईया की पूजा करनी चाहिए हो सकता है कि माता हमें भी पुत्र दे दें। तब जेठानी ने कहा कि हां छोटी कह तो तू ठीक रही है, और फिर दोनों ने अवसान मईया की पूजा की। अवसान मईया की कृपा से जल्द ही उन दोनों को एक–एक पुत्र हुआ। देवरानी अपनी जेठानी से कहने लगी कि दीदी हम दोनों ने कितना पूजा पाठ किया, कितना पैसा खर्च किया लेकिन उसका कोई फल नहीं मिला, और अवसान मईया की पूजा करते ही उन्होंने हमारी सुन ली। माता की कृपा से ही हमारी गोद भरी है तो क्यों ना हम अवसान मईया का प्रसाद बांट दें। जेठानी बोली कि छोटी कह तो ठीक रही है लेकिन अभी हमारे बच्चे छोटे हैं थोड़ा बड़ा हो जाने दो फिर अवसान मईया का प्रसाद बांट देंगे। देवरानी ने कहा कि ठीक है दीदी बच्चे थोड़ा बड़े हो जाएं तो हम प्रसाद बांट देंगे।
थोड़ा समय बीता और बच्चे बैठने वाले हो गए तो देवरानी ने फिर अपनी जेठानी से कहा दीदी चलो अब माता रानी का प्रसाद बांट दें। जेठानी बोली कि छोटी अभी हमारे बच्चे केवल बैठते ही हैं थोड़ा अपने पैरों पर चलने लगें तो प्रसाद बांट देंगे। देवरानी ने कहा कि ठीक है दीदी! कुछ दिन के बाद बच्चे चलने भी लगे तो देवरानी ने कहा कि दीदी अब तो बच्चे चलने भी लगे हैं चलो अब हम अवसान मईया का प्रसाद बांट दें! जेठानी कहने लगी कि छोटी ऐसा है ना कि बच्चे जब पांच साल के होंगे तो उनका मुण्डन संस्कार भी कराना पड़ेगा तो उसी समय अवसान मईया का प्रसाद बांट देंगे।
देवरानी बोली कि चलो ठीक है दीदी जैसा तुम ठीक समझो! धीरे–धीरे बच्चे पांच साल के हो गए और उनका मुण्डन भी हो गया, तो देवरानी ने कहा कि छोटी अभी मुण्डन कराने में बहुत पैसा खर्च हो गया है तो इनकी जब शादी होगी तो अवसान मईया का प्रसाद बांट देंगे। देवरानी बोली कि दीदी हमें अब प्रसाद बांट देना चाहिए वैसे भी पांच साल हो चुके हैं हमने एक बार भी अवसान मईया का प्रसाद नहीं बांटा है। जेठानी गुस्से से बोली कि छोटी तुझे बहुत जल्दी है प्रसाद बांटने की तो तू बांट दे, मैं तो जब शादी करूंगी तो अवसान मईया का प्रसाद बांटूंगी। जेठानी की बात सुनकर देवरानी ने अपना प्रसाद बांट दिया। पहले समय में बच्चों की शादी भी जल्दी हो जाती थी, थोड़े समय में दोनों बच्चे विवाह लायक हो गए। कुछ दिनों में बच्चों के रिश्ते आने लगे और फिर दोनों का रिश्ता भी तय हो गया। शादी का दिन नजदीक आने पर सारे रिश्तेदार आने लगे और अपने–अपने नेग की फरमाइश करने लगे। जेठानी ने कहा कि सभी को नेग मिलेगा मेरा एक ही तो बेटा है।
अवसान मईया ने जब यह देखा तो सोचने लगीं कि यह जब सबको दे रही है तो हम भी क्यों ना अपना प्रसाद ले लें। यह सोचकर अवसान मईया ने एक बूढ़ी औरत का भेष बना लिया और गुड़ चना अपने ऊपर लगा लिया और जेठानी के पास आकर कहने लगीं कि मेरा भी तो हिस्सा है मेरा हिस्सा दे दो। जेठानी ने जब बूढ़ी औरत को देखा तो गुस्सा होकर बोली कि यह भिखारिन कहां से आ गई। अवसान मईया को जेठानी पर बहुत क्रोध आया कि यह तो अपनी मनौती ही भूल गई इसको मेरा प्रसाद ही याद नहीं है। अवसान मईया ने सोचा कि इसको सबक सिखाना चाहिए, जेठानी के बेटे की बारात चली गई और द्वारपूजा होने के बाद फेरों की तैयारी शुरू हो गई। फेरे भी शुरू हो गए लेकिन जैसे ही छः भांवर पड़ी ही थीं कि सातवें फेरे लेने से पहले ही इतनी जोर की आंधी आई कि दूल्हे को ही उड़ा ले गई और ले जाकर एक कुएं में डाल दिया। सारे बाराती दूल्हे को ढूंढने लगे लेकिन उन्हें दूल्हा कहीं भी नहीं मिला। थक हारकर सब वापस लौट आए। उधर जब भी दुल्हन बाहर निकलती सब उसको ताने मारते कि देखो इसका दूल्हा छः भांवर लेने के बाद पता नहीं कहां उड़ गया।
इस प्रकार की दुनिया वालों की बातें सुनकर लड़की बहुत उदास रहने लगी, और उसने घर से बाहर निकलना ही छोड़ दिया। उसकी यह हालत देखकर एक दिन उसके पिता अपनी पत्नी से कहने लगे कि एक तो हमारा दामाद पता नहीं कहां आंधी में उड़ गया और बेटी की हालत भी ऐसी हो गई है, क्यों ना तुम इसे भी काम पर लगाया करो जिससे कि इसका मन बहल जाए। एक दिन लड़की की मां ने कहा कि बेटी तू जाकर कुएं से पानी भर ला। मां के कहने पर लड़की पानी लेने के लिए कुएं पर गई, उसी कुएं में उसके पति को अवसान मईया ने डाल दिया था। लड़की ने जैसे ही बाल्टी में रस्सी बांध कर कुएं में डाली तो लड़के ने बाल्टी पकड़ ली, लड़की बार बार बाल्टी खींच रही थी लेकिन लड़का छोड़ता ही नहीं था। उसके साथ गई हुई सारी औरतें पानी भर कर वापस लौट गई लेकिन वह लड़की पानी नहीं भर पाई, गुस्से में आकर उसने कहा कि कौन है कुएं के अंदर! भूत है या कोई प्रेत जो मेरी बाल्टी नहीं छोड़ रहा है। लड़का बोला कि ना कोई भूत है और न ही प्रेत, मैं तो तेरा अधब्याहा पति हूं।लड़के ने यह कहकर बाल्टी छोड़ दी और लड़की पानी लेकर घर चली आई। अब रोज ही ऐसा होने लगा कि सब पानी लेकर वापस आ जातीं और लड़की को रोज ही देर हो जाती पानी लेकर आने में, अब सभी लोग बातें बनाने लगे कि इसका कोई चक्कर चल रहा है तभी तो यह सबके साथ वापस नहीं आती है।
उसके पिता ने जब यह सुना तो अपनी पत्नी से कहने लगा कि वैसे ही अधब्याही होने की वजह से इसको कलंक लग चुका है अब तो और भी बदनामी हो रही है, कल से तुम इसके साथ जाना। लड़की की मां ने लड़की से देर से आने का कारण पूछा तो लड़की ने उसे कुएं वाली बात बता दी। मां ने कहा कि मैं कल से तेरे साथ चलूंगी, अगले दिन सुबह पानी लेने के लिए मां और बेटी दोनों जब कुएं पर गई तो बेटी ने जैसे ही बाल्टी कुएं में डाली लड़के ने बाल्टी पकड़ ली। मां ने कहा कि तुम कौन हो और इस तरह से मेरी बेटी के पीछे क्यों पड़े हो! तब लड़के ने कहा कि मैं आपका दामाद हूं,मुझे अवसान मईया ने आंधी में उड़ा कर यहां डाल दिया था। लड़की की मां ने उससे कहा कि बेटा अब मैं ऐसा क्या करूं जिससे कि तुम वापस लौट कर आ जाओ। लड़के ने बताया कि कैसे उसकी मां ने अवसान मईया की मनौती मानी थी और प्रसाद मानकर उनका प्रसाद नहीं बांटा और अवसान मईया ने नाराज होकर उसे शादी से उठाकर कुएं में डाल दिया। तब लड़की की मां ने कहा कि मैं भी तो तुम्हारी मां के जैसी ही हूं, मुझे बताओ कि अवसान मईया की पूजा कैसे करनी है मैं कर लूंगी। लड़के ने बताया कि अवसान मईया की पूजा वृस्पतिवार को की जाती है, सात सुहागिनों के साथ पूजा की जाती है और सवाया प्रसाद होता है आप अपनी इच्छा अनुसार पांच या सात जितना भी हो उसके साथ सवाया लगा कर प्रसाद बांटा जाता है। अगर आप यह मनौती पूरी कर देंगी तो अवसान मईया मुझे छोड़ देंगी।
उस दिन वृहस्पतिवार का ही दिन था, लड़की की मां ने कहा कि अवसान मईया मैं तुम्हारी पूरी विधि से पूजा करूंगी और सात की जगह चौदह सुहागिनें बैठाऊंगी यानि कि डबल पूजा करूंगी। लड़की की मां ने कुएं पर ही जो जगह थी साफ करने के बाद सब सुहागिनों को न्योता दिया और अवसान मईया का प्रसाद सबको बांटने के बाद पूजा और आरती सब कुछ विधिपूर्वक किया। उसके इस प्रकार पूजा करने और प्रसाद बांटने से अवसान मईया खुश हो गईं और लड़के को कुएं से बाहर लेकर आ गईं और लड़के और लड़की की शादी पूरी हो गई।
लड़के की मां को जब सारी बात मालूम हुई तो उसने अवसान मईया से माफी मांगी कि जैसे ही मेरे बहू बेटे घर वापस लौट कर आयेंगे मैं भी आपकी पूजा कर सुहागिनें न्योत कर प्रसाद बांटूंगी। उसके बेटा और बहू घर आ गए तो उसने भी अवसान मईया का प्रसाद बांटा जिससे कि अवसान मईया खुश हो गईं और उसकी भूल को माफ कर दिया।