Avsani maiya ke prakat hone ki katha.

अवसानी मईया के प्रकट होने की कथा:
आज मैं आपको अवसानी मैया के प्रकट/उत्पन्न होने की कहानी बताने जा रही हूं, आशा करती हूं कि आप सभी को पसंद आयेगी। तो चलिए जानते हैं कि अवसान मईया कैसे उत्पन्न हुई।
एक समय की बात है एक नगर में एक राजा राज्य करता था। राजा बहुत ही परोपकारी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। राजा को ईश्वर में बहुत विश्वास था। एक बार राजा ने अपने राज्य में यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में सम्मिलित होने के आसपास के सभी राजाओं, साधु–महात्माओं, और नगरवासियों को निमंत्रण भेजा। राजा के निमंत्रण देने पर सभी उनके यहां उपस्थित हुए। यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए एक महात्मा जी भी आए थे जोकि देखने में बहुत ही तेजवान और प्रतापी लग रहे थे। उनके मस्तक से तेज निकल रहा था, राजा ने जब उनको देखा तो उन्हें दंडवत प्रणाम किया और अपने साथ महल में ले गए और उन्हें भोजन करने के लिए कहा तो महात्मा जी ने कहा कि मैं रसोइयों द्वारा बनाया गया भोजन गृहण नहीं कर सकता। मैं इस प्रकार का भोजन नहीं करता हूं। राजा ने हाथ जोड़कर साधु से विनती करी कि हे गुरुदेव आप हमारे यहां से ऐसे भूखे तो नहीं जा सकते हैं आपको कुछ न कुछ तो खाना ही पड़ेगा। महात्मा जी हंस कर उत्तर दिया कि मैं ऐसा कहां कह रहा हूं कि मैं भोजन नहीं करूंगा, मैने यह कहा है कि मैं ये भोजन नहीं करूंगा।
राजा ने पूछा कि हे गुरुदेव आप मुझे बताएं कि आप कैसा भोजन करेंगे। तब महात्मा जी ने कहा कि हे राजन्! मैं आपकी रानी के हाथ का बना भोजन करूंगा। राजा ने कहा ठीक है गुरुदेव जैसी आप कहें मैं वैसा ही करूंगा, राजा ने तुरंत अपनी रानी को बुला भेजा, रानी के आने पर राजा ने कहा कि हे रानी! आप साधु–महात्मा के लिए भोजन तैयार कर दीजिए। रानी ने कहा ठीक है महाराज मैं भोजन बना देती हूं, तो साधु ने कहा कि हे रानी! मैं ऐसे ही भोजन नहीं करूंगा मुझे छप्पन प्रकार का भोजन चाहिए, इसलिए आप मेरे लिए छप्पन प्रकार का भोजन बनाइए। रानी ने कहा कि ठीक है महाराज मैं आपके लिए छप्पन प्रकार का भोजन तैयार कर देती हूं इतना कहकर रानी भोजन बनाने के लिए चली गई।
थोड़ा समय बीतने पर रानी एक बड़े से थाल में छप्पन प्रकार का भोजन सजा कर साधु के सामने उपस्थित हुई तो साधु ने देखा कि रानी ने छप्पन प्रकार का भोजन तैयार किया है तो साधु उस सारे भोजन को एक साथ एक में मिला दिया। रानी को बहुत आश्चर्य हुआ! रानी ने सोचा कि यह साधु–महात्मा कैसे हैं इन्होंने तो मेरा बनाया हुआ सारा भोजन एक में ही मिला दिया है। तभी रानी ने देखा कि साधु महाराज ने सारा भोजन मिलाने के बाद सात बड़े–बड़े गोले बनाए और उसी थाल में रख दिए, रानी यह सब बहुत आश्चर्य से देख रही थी। तभी साधु–महाराज ने रानी से कहा कि इन्हे अन्दर ले जाकर रख दो और मैं जब दोबारा वापस आऊंगा तो मैं यही थाल और भोजन आपसे वापस मागूंगा। रानी ने कोई भी सवाल नहीं किया और उस थाल को लेकर अन्दर चली गई और उसको संभाल कर रख दिया।
समय बीता, कुछ वर्ष बीत जाने के बाद वही साधु–महात्मा फिर राजा के यहां उपस्थित हुए। राजा ने जब साधु को देखा तो उन्हें पहचान कर उन्हें दंडवत प्रणाम किया और आदर के साथ उनको अपने महल के अन्दर ले कर गए। साधु ने राजा से कहा कि मैने जो थाल रानी को रखने को दिया था मुझे वही थाल वापस चाहिए। राजा ने रानी को बुलाया और कहा कि जो थाल साधु महाराज ने आपको रखने को दिया था वह थाल के आइए। रानी ने कहा कि ठीक है मैं थाल लेकर आती हूं, और फिर रानी ने वह थाल लाकर साधु महाराज को दे दिया। साधु ने देखा कि उसमे रखे हुए भोजन के गोले सूख गए थे। साधु ने वह सारे गोले थाल में से उठाकर आकाश की तरफ उछाल दिए। आकाश में उछालने के बाद उन गोलों ने माता का रूप धारण कर लिया। माता ने प्रकट होकर कहा कि मैं अवसान माता हूं! जो कोई भी सच्चे मन से, सच्ची भावना से मेरी पूजा करेंगे, मेरी सुहागिन जिमावेंगे, मैं उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करूंगी। अवसान माता ने कहा कि मैं हर खुशी के काम को पूरा करूंगी और उनके घर को धन–धान्य से भर दूंगी। किसी भी शुभ कार्य में मेरी पूजा करने से मैं सबके शुभ कार्यों को खुशी–खुशी पूरा कराऊंगी। संसार में मैं अवसान माता के नाम से पूजी जाऊंगी। ऐसा कहकर अवसान मईया अंतर्ध्यान हो गईं। तभी से हर घर में सभी खुशी के काम में अवसान माता की पूजा की जाती है।
शादी, मुंडन, संस्कार आदि सभी शुभ कार्यों में अवसान मईया की पूजा करने से माता सभी कार्य को हंसी–खुशी पूरा करती हैं।
बोलो अवसान मईया की जय!