Mohini Ekadashi Vrat Katha/Vrat Katha In Hindi.

मोहिनी एकादशी:
जैसा कि आप सभी को मालूम होगा कि एक साल में 24 एकादशी होती हैं, यानि कि एक महीने में दो एकादशी होती हैं। आज हम आपको मोहिनी एकादशी व्रत के बारे में बताने जा रहे हैं, जोकि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। माना जाता है कि मोहिनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। मोहिनी एकादशी व्रत रखने वाले को बहुत कठिन नियमों का पालन करना पड़ता है। कहते हैं कि विष्णु भगवान ने समुद्र मंथन के समय देवताओं को अमृत का पान कराने के लिए मोहिनी रूप धरा था, इसी वजह से इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह एकादशी सभी पापों को को दूर कर अंत में मोक्ष प्रदान करती है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी दुखों से दूर होकर अंत में बैकुंठ धाम को जाता है। इस दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु की अराधना करनी चाहिए, रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करते हुए, भजन कीर्तन करते करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि इस व्रत में दशमी तिथि से व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए।
मोहिनी एकादशी व्रत कथा:
प्राचीन समय की बात है, सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी थी। उस नगरी में द्युतिमान नामक राजा राज्य करते थे। उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन और धान्य से पूर्ण था, उसका नाम धनपाल था। धनपाल बहुत ही धर्मात्मा प्रवृति का था, उसने नगर में अनेक प्याऊ, तालाब, कुएं और भोजनालय आदि बनवाये, सड़कों के किनारे आम, जामुन,नीम आदि के पेड़ लगवाए, जिससे कि रास्तों पर आने जाने वालों को तकलीफ ना हो और वो उसका सुख उठा सके।

उस वैश्य के पांच बेटे थे। वैश्य का सबसे बड़ा पुत्र बहुत पापी और दुष्ट था। वह हमेशा वेश्याओं और दुष्ट लोगों की संगति में संलग्न रहता था। उसके बाद जो समय बचता था उसे वह जुआं खेलने में व्यतीत किया करता था। वह देवता, पितृ आदि किसी को भी नहीं मानता था। वह अपने पिता द्वारा कमाये हुए धन को बुरे कार्यों में ही उड़ाया करता था, वह प्रतिदिन मांस और मदिरा का सेवन किया करता था। जब बहुत समझाने के बाद भी वह सही रास्ते पर नहीं आया तो उसके भाइयों ने और पिता ने उसे घर से निकाल दिया। घर से निकाल दिए जाने के बाद वह अपने आभूषण और वस्त्रों को बेचकर अपना जीवन यापन करने लगा। जब उसके पास धन समाप्त हो गया तो उसके साथियों ने तथा वेश्याओं ने उसका साथ छोड़ दिया। धन समाप्त हो जाने के बाद भूख प्यास से व्याकुल होकर वैश्य का पुत्र रात्रि में चोरी करके अपना पेट पालने लगा। एक बार वह चोरी करते हुए पकड़ लिया गया लेकिन सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र होने की वजह से उसको छोड़ दिया। इसी तरह जब दूसरी बार वह चोरी करते हुए पकड़ा गया तो इस बार सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र होने का लिहाज नहीं किया और उसे राजा के सामने पेश करके सारी राजा को बता दी। राजा ने सारी बातें सुनने के बाद उसे कारागार में डालने का आदेश दे दिया। कारागार में वैश्य के पुत्र को बहुत कष्ट दिए गए और थोड़े दिन बाद उसे नगर से निकल जाने का आदेश राजा ने दे दिया, दुखी होकर वैश्य के पुत्र को नगर छोड़ना पड़ा।

नगर छोड़ने के बाद वैश्य का पुत्र जंगल में रहने लगा, अब वह जंगल में पशु–पक्षियों को मारकर अपना पेट भरने लगा।कुछ समय बाद वह धनुष बाण से जंगल के निरीह जीवों को मार–मार कर खाने लगा और उनका शिकार कर उन्हे बेचने लगा। एक बार उसे कोई भी शिकार नहीं मिला तो भूख और प्यास से व्याकुल होकर भोजन की तलाश में निकला और कौटिन्य मुनि के आश्रम में जा पहुंचा। जब वह कौटिन्य मुनि के आश्रम में पहुंचा तो उस समय वैशाख का महीना चल रहा था। कौटिन्य मुनि गंगा स्नान करके आए थे। उसके वस्त्र भीगे हुए थे, उनके भीगे वस्त्रों के छींट पड़ने से इस पापी को कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई और वह ऋषि के पास पहुंच कर हाथ जोड़कर कहने लगा कि –हे महात्मन! मैने अपने जीवन काल में बहुत पाप किए हैं, कृपा करके आप मुझे उन पापों से मुक्ति पाने का साधारण और बिना धन का कोई उपाय बतलाइए।

कौटिन्य मुनि ने कहा कि तुम वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत किया करो, इस एकादशी का नाम मोहिनी है। इस एकादशी का व्रत करने से तेरे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। ऋषि की बात सुनकर वैश्य का पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ और फिर उसने मुनि की बताई हुई विधि के अनुसार मोहिनी एकादशी व्रत को किया। इस व्रत को करने के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुण पर सवार होकर विष्णु लोक को चला गया। संसार में इस व्रत से उत्तम दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके महात्मय का श्रवण करने से तथा पठन करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह पुण्य सहस्त्र गौदान के पुण्य के बराबर होता है।