Avsan Mata Ki Kahani–Saat Raniyo Ki Kahani.

अवसान माता की सात रानियों की कहानी

आज मैं आप लोगों के लिए अवसान माता की कहानी लेकर आई हूं, जिनको हम अवसान बीबी, अवसनी मईया भी कहते हैं।तो चलिए जानते हैं अवसान माता की कहानी–सात रानियों की कहानी! अगर आपको कहानी पसंद आती है तो कमेंट बॉक्स में बताएं और मुझे फॉलो करें।

एक राजा थे, उनकी सात रानियां थीं। सात रानियों के होने के बाद भी राजा के कोई सन्तान नहीं थी, इसी कारण राजा और सातों रानियां बहुत दुःखी और परेशान रहते थे। राजा और उनकी रानियां बहुत पूजा–पाठ करते थे। एक बार उनके यहां अवसान मईया की पूजा का बुलावा आया तो जो 6 रानियां थीं वो आपस में कहने लगीं कि हम लोग तो रानियां हैं किसी के गुड़ और चना खाने जायेंगे तो क्या अच्छा लगेगा। परन्तु सातवीं रानी का पूजा में जाने का बहुत मन था, सातवीं रानी के साथ उनके मायके से एक दासी भी आई थी। रानी ने अपनी दासी से कहा कि मेरा तो बहुत मन है पूजा में जाने का लेकिन जब यह छः रानियां नहीं जाएंगी तो मैं अकेले कैसे जाऊं। दासी कहने लगी कि कोई बात नहीं रानी जी, आप अकेले नहीं जा सकती हैं लेकिन मैं तो वहां जा सकती हूं। मैं चली जाती हूं। रानी ने कहा कि यह ठीक है तुम पूजा में शामिल होने के चली जाओ।

रानी के कहने पर वह दासी अवसान मईया की पूजा में शामिल होने के लिए जाती है और वहां से प्रसाद लाकर सातवीं रानी को दे देती है। रानी ने अवसान मईया के प्रसाद को बहुत श्रद्धा के साथ ग्रहण किया और हाथ जोड़कर कहा–हे मां! हम को भी बेटी देना और बेटे देना। माता ने सातवीं रानी की प्रार्थना सुन ली, कुछ दिन बाद राजा को पता चला कि उनके यहां खुशियां आने वाली हैं। राजा खुश होकर खूब दान–पुण्य करने लगे और सातवीं रानी का खूब खयाल रखने लगे। यह देखकर जो छः बड़ी रानियां थीं उनको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। वो सब आपस में कहने लगीं कि अभी तो राजकुमार आए भी नहीं है और राजा साहब छोटी रानी का इतना ध्यान रख रहे हैं और जब राजकुमार आ जायेंगे तो हमारी तो कोई इज्जत ही नहीं रह जायेगी। सारी रानियां कहने लगीं कि हां हमें कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे कि राजा का ध्यान हम सब पर भी जाए। एक दिन जब राजा छोटी रानी का हालचाल पूछने के लिए जा रहे थे तो रानियों ने कहा कि राजा साहब आप क्यों परेशान होते हैं। हम सब छोटी रानी का ख्याल रख लेंगे आप अपने राज्य को संभालिए, राजकुमार आएगा तो वह हमें भी तो मां कहेगा, छोटी रानी के साथ–साथ हम सब भी तो मां बनेंगी। इसलिए हम सब मिलकर छोटी रानी का पूरा ध्यान रखेंगे।

सारी रानियों के इस प्रकार से कहने पर राजा ने कहा कि ठीक है। जब राजकुमार के पैदा होने का समय आया तो राजा ने कहा कि क्या तैयारी की जाए, तो रानियों ने कहा कि राजा साहब आप परेशान ना हों हम सब संभाल लेंगे। दासियां और हम सब मिलकर सब काम संभाल लेंगे। राजा ने कहा कि ठीक है और निश्चिंत होकर अपने राज्य के कार्य में लग गए। कुछ समय बाद जब राजकुमार का जन्म हुआ तो रानी ने जैसे प्रसाद खाते समय कहा था कि हमें बेटी देना और बेटे देना, तो अवसान मईया ने उनकी पूरी बात सुन ली थी। छोटी रानी ने पांच बेटे और एक बेटी को जन्म दिया। जब सारी रानियों ने यह देखा कि अरे इनके तो पांच बेटे और एक बेटी हुई है तो जैसा कि उन लोगों ने पहले ही सोचा था कि जब रानी के बच्चा होगा तो हम उसे रोने से पहले ही हटा देंगे। छहों रानियों ने बच्चों के रोने से पहले ही उनको छोटी रानी के पास से हटा दिया। रानी को जब होश आया तो उसने पूछा कि क्या हुआ है तब सारी रानियों ने कहा कि आपके तो कंकड़–पत्थर हुए हैं और उन्हें कंकड़ पत्थर दिखा दिए जो उन्होंने पहले से लाकर रख दिए थे। यह देखकर छोटी रानी बहुत दुःखी हो गई और सोचने लगी कि जब राजा साहब सुनेंगे तो बहुत दुःखी होंगे।

उधर छहों रानियों ने सोचा कि इन बच्चों को मार दिया जाए। रानी के मायके से जो दासी आई थी वो यह सब देख रही थी, उसको यह देखकर बहुत दुःख हो रहा था कि छोटी रानी ने कितनी प्रार्थना करने के बाद अवसान मईया से बच्चे होने का वरदान पाया था और ये रानियां इन बच्चों को मारने जा रही हैं। दासी ने रानियों से कहा कि आप लोग क्यों इन्हे मारकर अपने सर पर हत्या करने का इल्जाम ले रही हैं मैं इन्हे यहां से कहीं दूर जंगल में छोड़ आऊंगी वहां जब इन्हें कुछ खाने–पीने को नहीं मिलेगा तो ये सब अपने आप ही मर जायेंगे। रानियों ने सारे बच्चे दासी को से दिए और कहा कि तुम इन्हें जंगल में छोड़ आओ। दासी ने रानियों से तो बच्चों को जान बचा ली और उन्हे अपने साथ लेकर वहां से चल दी, लेकिन अब वो यह सोच रही थी कि मैं बच्चों को कैसे और कहां छुपाऊं जिससे रानियों को इनके जिंदा रहने की बात पता ना चल पाए। दासी यह सब सोचते–सोचते जा रही थी कि तभी उसकी नज़र एक कुम्हार के घर पर पड़ी, उसने सब बच्चों को कपड़े में लपेटकर कुम्हार के आंवे के पास लिटा दिया और चुपचाप वहां से चली आई और भगवान से प्रार्थना की कि हे ईश्वर! इन बच्चों को रक्षा करना।

जब दासी महल में पहुंची तो उसने देखा कि छोटी रानी बहुत दुःखी होकर रो रही हैं, क्योंकि उन्हें तो पता ही नहीं था कि उनके छः बच्चे हुए हैं। राजा ने पूछा कि क्या हुआ है तो सबसे बड़ी रानी ने कहा कि राजा साहब क्या बताएं ऐसा कभी नहीं देखा कि किसी को कंकड़–पत्थर हुए हों, लेकिन छोटी रानी ने तो कंकड़–पत्थर को जन्म दिया है। राजा ने कहा कि अरे आप लोग कैसी बातें कर रही हैं कहीं मनुष्य को कंकड़–पत्थर होते हैं? तो रानियों ने पहले से लाकर रखे हुए कंकड़ और पत्थर राजा को दिखा दिए। राजा ने कहा कि ठीक है लेकिन मैं अब छोटी रानी को महल में नहीं रहने दूंगा। इसने हमारी बहुत बेइज्जती करा दी है सब तरफ यह बात फैल गई थी कि राजकुमार आने वाले हैं और इसने कंकड़–पत्थर पैदा किए हैं। यह कहकर राजा ने छोटी रानी को महल से निकाल दिया और कहा कि जाकर सारे राज्य के कौवे हंकाओ। रानी बेचारी अपने ही राज्य में कौवा हांकने लगी। उधर जब सवेरा हुआ और कुम्हार उठकर बाहर आया तो उसने देखा कि आवां के पास छोटे–छोटे छः बच्चे पड़े हुए हैं।

कुम्हार ने जब बच्चों को देखा तो वह बहुत खुश हुआ क्योंकि उसके भी कोई सन्तान नहीं थी। वह रोज सुबह उठकर भगवान से यही प्रार्थना करता था कि हे प्रभु! मुझे भी एक औलाद दे दो जिससे कि मेरा वंश आगे बढ़ सके। तभी कुम्हार को ध्यान आया कि महल में छोटी रानी मां बनने वाली थीं कहीं ये बच्चे उन्ही के तो नहीं हैं? कुम्हार ये भी जानता था कि बड़ी छः रानियां बहुत तेज हैं और कहीं उन्होंने ईर्ष्या के कारण ही तो नहीं फेंक दिया। लेकिन उसने यह भी सोचा कि कहीं वापस देने पर बड़ी रानियां बच्चों को मार ना डालें। यही सोचकर कुम्हार ने बच्चों को अपने पास ही रख लिया। बच्चे जब थोड़े बड़े हुए तो कुम्हार ने पांचों राजकुमारों को मिट्टी के हाथी और घोड़े बनाकर दे दिए और जो राजकुमारी थी उसको भी मिट्टी की चकिया बनाकर दे दी। बच्चे जब घोड़ा चलाते तो आवाज करते थे कि चल मेरे घोड़े हिन–हिन–हिन और हाथी की भी ऐसे ही आवाज निकालते रहते थे। राजकुमारी जब चकिया चलाती तो वो भी बोलती थी कि चल मेरी चकिया चकर–चकर, चल मेरी चकिया चकर–चकर।

कुम्हार के घर के पास से छहों रानियां रोज गंगा नहाने के लिए जाती थीं। वह रोजाना बच्चों को खेलते हुए देखती थीं। एक दिन बड़ी रानी ने सब रानियों से कहा कि कहीं ये बच्चे छोटी रानी के तो नहीं हैं क्योंकि उनके भी तो पांच लड़के और एक लड़की हुई थी। यह सोचकर वह सब डर गईं कि कहीं राजा साहब को अपने बच्चों के बारे में पता ना चल जाए। एक दिन छहों रानियां राजा के पास जाकर कहने लगीं कि राजा साहब ये जो अपने राज्य में कुम्हार है उसके बच्चे हम लोगों की बिलकुल भी इज्जत नहीं करते हैं। कुम्हार ने उन्हे बहुत बदतमीजी सिखाई है, हम जब भी उधर से गुजरते हैं तो अपने मिट्टी के हाथी और घोड़े को कहते हैं कि चल मेरे घोड़े हिन–हिन–हिन और लड़की अपनी चकिया से करती है कि चल मेरी चकिया चकर–चकर! रानियों ने राजा से कहा कि क्या उसकी चकिया हमारे रथ के पहियों से तेज चलते हैं और उनके हाथी और घोड़े क्या हमारे घोड़ों से तेज दौड़ते हैं। राजा ने कहा कि जाने दो वो तो बच्चे हैं लेकिन रानियों ने राजा को उल्टा–सीधा समझाकर उन बच्चों को मरवा दिया। कुम्हार ने जब यह देखा तो बहुत दुःखी होकर सोचने लगा कि इन रानियों ने पहले भी बच्चों को जीने नहीं दिया था और आज सचमुच उनकी जान ले ली। कुम्हार ने सोचा कि मैं जीते जी तो बच्चों को अपने पिता से मिलवा नहीं पाया लेकिन अब मरने के बाद उन्हें महल में जगह दिलवाऊंगा, ऐसा विचार कर कुम्हार ने बच्चों को ले जा कर राजा साहब के बगीचे में गाड़ दिया।

कुम्हार रोज रात को छुपकर बगीचे में जहां उसने बच्चों को गाड़ा था देखने जाता था। कुछ समय बाद जहां उसने बच्चों को गाड़ा था वहां पर पेड़ निकल आए। जो पांच लड़के थे उनकी जगह पर आम के पेड़ निकले और जो राजकुमारी थी उसकी जगह पर केतकी का पेड़ निकल आया। एक दिन कुम्हार ने देखा कि केतकी के पेड़ पर फूल निकल आए हैं। कुम्हार ने आम के पेड़ों से एक–एक पत्ता तोड़ा और केतकी का फूल ले जाकर राजा को दे दिया, उसने सोचा कि राजा साहब ने तो अपने बच्चों को गोद में उठाया ही नहीं था तो चलो कम से कम इसी बहाने वो अपने बच्चों को गोद में उठा लेंगे। राजा ने जब फूल और पत्तों को देखा तो बोले कि अरे ये तो बहुत सुंदर फूल है और यह आम के पत्ते भी कितने सुंदर लग रहे हैं। राजा ने कुम्हार से पूछा कि इतने सुंदर फूल और पत्तों को कहां से लाए हो? तो कुम्हार ने कहा कि अरे राजा साहब ये तो आपने ही बगीचे के हैं, मैं इधर आ रहा था तो आपके लिए ले आया। राजा ने कहा कि मेरे बाग के हैं? राजा ने माली से पूछा तो माली ने कहा कि अरे राजा साहब ये तो अपने आप उग आए थे। राजा ने कहा कि ये बहुत सुंदर हैं इन्हें मैं अपनी रानियों को दूंगा। राजा ने फूल और पत्ते ले जाकर अपनी छहों रानियों को दिए। रानियां फूल और पत्ते देखकर बहुत खुश हो गईं और उन्होंने राजा से पूछा कि इतने सुंदर फूल और पत्ते आप कहां से ले आए।

राजा ने कहा कि ये सब अपने बाग के हैं। रानियों ने सोचा कि चलो हम लोग इसको तोड़ने चलें। जब छहों रानियां बाग में फूल और पत्ते तोड़ने के लिए पहुंचीं तो फूल उनसे टूटा ही नहीं, फूल के पेड़ से आवाज आई पांचा भईया, पांचा भईया रानी फूल तोड़त हैं दे दें क्या? तो आम के पेड़ से आवाज आती कि नहीं–नहीं बहना आकाश छू जाओ! रानियों ने राजा को आकर यह बात बताई तो राजा भी फूल तोड़ने के लिए गए, जैसे ही राजा ने फूल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, फूल से आवाज आई पांचा भईया, पांचा भईया राजा फूल तोड़त हैं तोड़े दें क्या? आम के पेड़ से आवाज आई नहीं–नहीं बहना आकाश छू जाओ! फूल और ऊंचा हो जाता। राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करा दी कि जो भी इस फूल को तोड़ेगा उसे इनाम दिया जायेगा। लेकिन किसी से भी फूल नहीं टूटा। छोटी रानी की दासी भी यह सब देख रही थी उसे शक हुआ कि कहीं ये पेड़ और फूल रानी के बच्चे तो नहीं हैं।

दासी ने डरते–डरते राजा साहब से कहा कि राजा साहब जान की माफी हो तो एक बात कहें! राजा ने कहा कि कहो तो दासी ने कहा कि छोटी रानी भी तो इसी राज्य की हैं, आपने उनसे फूल तोड़ने को नहीं कहा। राजा ने कहा कि जब किसी से फूल नहीं टूटा तो ये कौवा हंकिनी क्या करेगी! दासी ने कहा कि अरे राजा साहब कह दीजिए आखिर आपका ही तो अन्नजल खाती हैं। राजा ने कहा कि ठीक है तुम जाकर कह दो, छोटी रानी को बुलाया गया तो वह बहुत डरी–डरी सी आईं और उन्होंने डरते–डरते अपना आंचल पेड़ के नीचे कर दिया। रानी के आंचल पेड़ के नीचे करते ही आवाज आई पांचा भईया, पांचा भईया मां फूल तोड़त है दे दें क्या? तो आम के पेड़ों से आवाज आई कि हां–हां आंचल में गिरो! मां के आंचल को फूलों से भर दो! इतना सुनते ही केतकी का पेड़ फूलों से भर गया और सारे के सारे फूल छोटी रानी के आंचल में आकर गिर गए। सारी प्रजा रानी की जय–जयकार करने लगी। राजा ने यह देखा तो उन्हें बहुत बुरा लगा कि मैने फूल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो फूल नहीं टूटा और कौवा हंकिनी से कैसे टूट गया। छहों रानियों ने जब यह देखा तो उन्हें थोड़ा सा शक हुआ कि कहीं ये पेड़ रानी के बच्चे यहीं तो नहीं दबे हैं, क्योंकि वो फूल कुम्हार के तोड़ने से भी टूट गया था। रानियों ने राजा से कहा कि राजा साहब, कौवा हांकने वाली के तोड़ने से फूल टूट गया और आपके तोड़ने से नहीं टूटा, आप इस पेड़ को कटवा दीजिए। राजा ने रानियों की बात सुनकर कहा कि हां हम इन पेड़ों को कटवा देंगे।

दासी यह देखकर परेशान हो गई कि अब यह रानियां ये पेड़ भी कटवा देंगी। वह दासी राजा साहब के पास जाकर बोलीं कि अरे राजा जी अकेले छोटी रानी के तोड़ने से ही तो फूल नहीं टूटा है, कुम्हार से भी तो टूटा है आप कुम्हार को बुलाकर पूछिए कि उसने फूल कैसे तोड़ा था। राजा ने कुम्हार को बुलाकर उससे पूछा कि तुम लोगों ने कौन सा जादू–टोना किया है जिसकी वजह से तुमसे और कौवा हंकिनी से फूल टूट गया लेकिन हमसे और रानियों से नहीं टूटा। कुम्हार ने कहा कि महाराज! मैने कोई जादू टोना नहीं किया है, अगर जान की माफी मिले तो एक बात कहूं! राजा ने कहा कि ठीक है जान की माफी है बोलो! तो कुम्हार ने कहा कि राजा साहब यहां पर आपके बच्चे गड़े हैं। राजा ने कहा कि मेरे बच्चे? तो कुम्हार ने कहा कि हां राजा साहब आपके बच्चे! आपने जिन पांच लड़कों और एक लड़की को मरवा दिया था वे आपके की बच्चे थे। आपकी छोटी रानी ने छः बच्चों को जन्म दिया था, जिनमें पांच लड़के और एक लड़की थी। आपकी छहों रानियों ने आपके साथ साजिश कर के बच्चों को फेंकवा कर उनकी जगह कंकर–पत्थर रखवा दिए थे। रानियां कहने लगीं कि यह कुम्हार झूठ बोल रहा है। राजा ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होता है तुम पेड़ों को काट दो, और राजा ने जैसे ही केतकी के पेड़ को कटवाया इस पेड़ से एक लड़की निकली। राजा ने कहा कि अरे यह पेड़ से लड़की कैसे निकली, तो कुम्हार ने कहा कि मैं तो आपसे यही कह रहा हूं कि यह आपकी बेटी है। फिर जब आम के पेड़ काटे गए तो वहां से पांच लड़के निकल कर आ गए। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने कुम्हार से कहा कि तुम मुझे सारी बात बताओ।

कुम्हार ने कहा कि राजा साहब आपकी छोटी रानी ने छह बच्चों को जन्म दिया था, लेकिन आपकी छहों रानियों ने बच्चे हटाकर उनकी जगह पर कंकर–पत्थर रखवा कर आपको दिखा दिए थे। राजा ने कहा कि क्या यह सच है? तो दासी ने कहा कि हां राजा साहब! रानियां बच्चों को मारना चाहती थीं तो मैने ही उन्हें कुम्हार के आवें के पास रख दिया था। छोटी रानी अपने बच्चों से मिलकर बहुत खुश हुईं। राजा ने कहा कि इन छहों रानियों को सजा मिलनी चाहिए और सजा के तौर पर इनके सर काट कर चौराहे पर कुत्तों से नुचवा दिया जाए। छोटी रानी बहुत ही दयालु थीं उन्होंने कहा कि नहीं राजा साहब इनको मृत्युदंड देने के बजाय इनको भी कौवा हांकने में लगा दिया जाए। राजा ने कहा कि आप ठीक कह रही हैं और उन्हें कौवा हांकने वाली बना दिया गया। प्रजा राजा की जय जयकार करती हुई जाने लगी तो बच्चे भी कुम्हार के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। राजा ने कहा कि बच्चों तुम लोग कहां जा रहे हो, इतने समय के बाद तो तुम लोग मुझे मिले हो अब महल में चलो। बच्चों ने कहा कि हमारे माता–पिता तो कुम्हार और उसकी पत्नी ही हैं, हम तो आप लोगों को जानते भी नहीं हैं। हम तो अपने माता पिता के साथ ही जायेंगे। राजा ने कहा कि ठीक है तुम कुम्हार को और उसकी पत्नी को भी अपने साथ महल में ले चलो। राजा ने कुम्हार को बहुत सारा धन और अपनी राज्यसभा में उचित पद देकर अपने साथ ही महल में रख लिया।

कुछ समय बाद एक दिन राजा ने छोटी रानी से पूछा कि हे रानी! हमें तो ज्योत्षियों ने कहा था कि हमें कभी भी औलाद नहीं होगी तो रानी ने कहा कि मैने अवसान माता का प्रसाद खाया था और अवसान माता से प्रार्थना की थी कि वो मुझे भी औलाद दे दें। अवसान मईया की कृपा से ही हमारे बच्चे हुए और इतने दिनों तक अवसान मईया ही हमारे बच्चों को रक्षा कर रही थीं। आपने उन्हे मरवा डाला फिर भी अवसान माता ने उनकी रक्षा करी और हमें हमारे बच्चे वापस लौटा दिए। राजा ने कहा कि हे रानी! मैं भी अवसान माता की पूजा करूंगा। फिर राजा और रानी दोनों ने अवसान मईया की पूजा करी और उनका प्रसाद प्रजा में बंटवाया। अवसान मईया की कृपा से वो लोग सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

हे अवसान मईया! जैसे आपने रानी को औलाद दी और राजा को सद्दबुद्धि दी, बच्चों की रक्षा की और रानी का मान–सम्मान वापस दिलाया। वैसे ही अवसान मईया हर कथा सुनने वाले और कथा कहने वाले की मनोकामना पूर्ण करें।

बोलो अवसान मईया की जय🙏

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