Aghan Maas Ki Ganesh Chauth Ki Katha.

गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व:
कहा जाता है कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान श्री गणेश के पूजन की जाती है। बुधवार का दिन भगवान श्री गणेश को समर्पित है। भक्तों के विघ्न दूर करने वाले विघ्नहर्ता गणेश जी को विघ्न विनाशक के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि चतुर्थी तिथि पर गणेश जी का पूजन और ध्यान कर उन्हें जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है। गणेश जी का पूजन करने से जीवन में ऊर्जा का संचार होता है। संकष्टी का व्रत करने से घर में सुख शांति बनी रहती है, गणपति महाराज अपने भक्तों की विपदाओं को दूर करके सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत की पूजा विधि:
संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखने से पहले प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें और इसके बाद पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें और गणेश जी के समक्ष दीपक जलाएं।
गणेश जी को सिंदूर लगाकर तिलक करें और फल-फूल आदि अर्पित करते हुए विधिवत पूजन करें।
दुर्वा की 21 गांठें अर्पित कर लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। पूजा पूर्ण होने के बाद क्षमायाचना करते हुए गणेश जी की आरती करें। इतना ही नहीं, इस दिन चंद्र दर्शन और अर्घ्य देने का भी नियम है।
यह व्रत सूर्योदय से पहले प्रारंभ हो जाता है और चंद्रोदय के बाद समाप्त होता है।
अगहन मास की गणेश चौथ की कथा
त्रेता में युग एक धर्मात्मा राजा थे उनका नाम दशरथ था और उनकी राजधानी का नाम अयोध्या था। एक बार वे शिकार खेलने वन में गए तो उनका शब्दबेधी बाण एक श्रवण कुमार को जा लगा जो सरयू से अपने अंधे माता–पिता के लिए जल लेने आया था। बाण के लगते ही वह अचेत हो गया। राजा दशरथ जब वहां पहुंचे तो उसने पूरी बात सुनाकर राजा से अपने माता–पिता को पानी पिला देने को प्रार्थना की और इसके साथ ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। जब राजा दशरथ ने श्रवण कुमार के माता पिता को उनके पुत्र की मृत्यु की दुखद सूचना दी तो वे बहुत दु:खी हो गए। शोक से भरकर वे राजा दशरथ को शाप देते हुए बोले कि जिस प्रकार पुत्र वियोग में हम मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं वैसे ही पुत्र वियोग में तुम्हारी भी मृत्यु होगी। उसके बाद दोनों ने अपने प्राण त्याग दिए। शाप सुन कर राजा दशरथ बहुत दुखी हुए।
जब रानी कैकेई ने वरदान स्वरूप राजा दशरथ से राम को वनवास भेजने की मांग की। राम के साथ लक्ष्मण और सीता भी वनवास गए थे। वन में रावण ने सीता का हरण कर लिया। सीता की खोज में हनुमान की मुलाकात गिद्धराज संपाती से हुई, वहां गिद्धराज ने बताया कि समुद्र के पार राक्षसों की नगरी लंका है। वहीं अशोक वृक्ष के नीचे माता जानकी बैठी हुई हैं, मुझे सब कुछ दिखाई देता है। हनुमान जी इस कार्य को श्री गणेश की कृपा से सीता माता को खोज लेंगे और क्षण भर में समुद्र के पार चले जायेंगे। इस तरह हनुमान जी ने गणेश जी का संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया और इसके प्रभाव से वह क्षण भर में समुद्र को लांघ गए और इस तरह माता सीता का पता चला। श्री गणेश की कृपा से श्री राम को इस युद्ध में विजय प्रप्त हुई। इस तरह जो भी इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती हैं।
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