Vaibhav Laxmi Vrat Katha In Hindi.

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के आधार पर वैभव माता लक्ष्मी की कथा शीला और उसके पति से जुड़ी है। शीला और उनका पति बहुत ईमानदार थे। वे किसी की भी बुराई नहीं करते थे, और प्रभु भजन में अपना समय व्यतीत करते थे। शहर के लोग उनकी गृहस्थी की प्रशंशा करते थे। शीला और उसके पति की जिन्दगी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। देखते ही देखते समय बदल गया. शीला के पति की अच्छी संगति बुरी में बदल गई. अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा. इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा और फलस्वरूप उसकी हालात भिखारी जैसी हो गई. शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गया. दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत लग गई. इस प्रकार उसने अपना सब कुछ जुए में गंवा दिया.

इसी तरह एक वक्त ऐसा भी था कि वह सुशील पत्नी शीला के साथ मजे में रहता था। दोनों प्रभु भजन में वक्त व्यतीत करते थे। लेकिन अब उसके बजाय घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने की बजाय दो वक्त भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियां खानी पड़ती थी।

शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुःख होता था। किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुःख सहन करती रही। कहा जाता है कि ‘सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख’ आता ही है। इसीलिए दुःख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी।

इस तरह शीला दुःख सहते- सहते प्रभु की भक्ति में समय बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा? फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिये, ऐसे आर्यधर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला।

उसने देखा तो सामने एक मांजी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थी। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आंखों से मानो अमृत बह रहा था। उनका भव्य चेहरा करूणा और प्यार से भरा हुआ था। उनका देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। वैसे शीला इस मांजी को पहचानती भी नहीं थी, फिर भी उनको देखकर शीला के मन में आनन्द छा गया। शीला मांजी को आदर के साथ घर ले आई। शीला के घर में मांजी को बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचाते हुए फटी हुई चद्दर पर उनको बिठाया।

मांजी ने कहा, क्यो शीला!मुझे पहचाना नहीं? शीला ने सकुचा कर कहा मां! मैं आपको पहचानती नहीं हूं, फिर भी आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति मिल रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूंढ रही थी वे आप ही है।

मांजी ने कहा कि क्यों मुझे भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन कीर्तन होते है, तब मैं भी वहां आती हूं। वहां हम हर शुक्रवार को मिलते हैं।

पति के गलत रास्ते पर चले जाने से शीला बहुत दुःखी हो गई थी, और दुःख की मारी वह लक्ष्मी जी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाने में भी उसे शर्म आती थी। उसने याददास्त पर जोर दिया पर यह मांजी याद नहीं आ रहीं थी।

तभी मांजी ने कहा, ‘तू लक्ष्मीजी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। बहुत दिनों से तू दिखाई नहीं दे रही थी, इसलिये मैने सोचा कि तू आती क्यों नहीं है? कहीं बीमार तो नहीं हो गई है? ऐसा सोचकर मैं मिलने चली आई हूं।’

मांजी के प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। मांजी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देखकर मांजी शीला के सिर पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं। मांजी ने कहा- बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दुःख आता है, तो दुःख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी और तुझे क्या परेशानी है? तेरे दुःख की बात मुझे बता, बताने से तेरा मन भी हल्का हो जायेगा और तेरे दुःख का कोई उपाय भी मिल जायेगा।

मांजी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने मांजी को कहा, मां! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियां थीं। मेरे पति भी बहुत सुशील थे। भगवान की कृपा से पैसे की भी कोई परेशानी नहीं होती थी। हम शांति से गृहस्थी चलाते ईश्वर-भक्ति में अपना वक्त व्यतीत करते थे। एकाएक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति को बुरी दोस्ती हो गई। बुरी दोस्ती की वजह से वो शराब, जुआ, और खराब आदतों के शिकार हो गये और उन्होने सब कुछ गँवा दिया और हम रास्ते के भिखारी बन गये।’

यह सुनकर मांजी ने कहा- कि ‘कर्म’ की गति न्यारी होती है।’ हर इन्सान को अपने कर्म इसी जनम में भुगतने पड़ते हैं। मांजी ने कहा, बेटी तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तेरे सुख के दिन आयेगे। तू तो मां लक्ष्मीजी की भक्त है। मां लक्ष्मीजी तो प्रेम और करूणा की अवतार हैं। वो अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिये तू धैर्य रख के मां लक्ष्मी का व्रत कर। ऐसा करने से सब कुछ ठीक हो जायेगा। मां लक्ष्मी का व्रत करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा ‘मा’! लक्ष्मीजी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे बताइए! मैं यह व्रत अवश्य करूंगी।

मांजी ने कहा, बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। उसे वरद लक्ष्मी व्रत या वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती हैं। वह सुख- समृद्धि और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर मांजी वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि बताने लगीं। शीला ये सुनकर आनंदित हो गई. शीला ने संकल्प करके आंखें खोली तो सामने कोई न था. वह सोच में पड़ गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल ये समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं मां लक्ष्मीजी ही थीं।

दूसरे दिन शुक्रवार था। सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहने और शीला ने मांजी के द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया। उसके बाद आखिरी में प्रसाद बांटा गया। शीला ने सबसे पहले अपने पति को प्रसाद खिलाया, प्रसाद खाते ही उसके पति के स्वभाव में फर्क आ गया। उस दिन उसने शीला को मारा भी नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनंद हुआ। उसके मन में वैभव लक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा और भी बढ़ गई।

शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से 20 शुक्रवार वैभवलक्ष्मी व्रत किया। 21वें शुक्रवार को मांजी के कहे मुताबिक उद्यापन करके सात स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दी। फिर माताजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी। हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मांगी थी वह व्रत आज पूर्ण हो गया है। हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अखंड रखना। कुंवारी लड़कियों को मन मुताबिक पति देना। जो भी आपका यह चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत करे उनकी सब विपत्ति दूर करना। सबको सुखी करना। हे मां! आपकी महिमा अपार है।

ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया। इस तरह शीला ने विधिपूर्वक और श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति गलत रास्ते पर चला गया था, वह अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके फिर से अपना व्यवसाय करने लगा। मां वैभव लक्ष्मी की कृपा से शीला के घर में धन की बाढ़ आ गई। मां वैभव लक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी वैभव लक्ष्मी का व्रत करने लगीं।

कब से शुरू करना चाहिए वैभव लक्ष्मी व्रत

वैभव लक्ष्मी का व्रत शुक्रवार के दिन रखा जाता है। ऐसे में इस व्रत को शुक्रवार से शुरू करना चाहिए। इस दिन माता संतोषी की पूजा भी होती है लेकिन व्रतों का विधान अलग-अलग होता है।

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