Ganga snan ki kahani –Kartik Maas Ki Kahani.

गंगा स्नान कार्तिक मास की कहानी।
कार्तिक मास में पवित्र नदी में स्नान करने का विधान है। इस पूरे मास में कार्तिक स्नान और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और कार्तिक मास की कथा सुनी जाती है। इससे सांसारिक पापों का नाश होता है और भगवान श्री विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

एक नगर में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। वे रोजाना सात कोस दूर गंगा स्नान करने जाते थे। इतनी दूर से वापस आने के बाद घर ब्राह्मणी बहुत थक जाती थी, तब ब्राह्मणी कहती थी अगर हमारे एक बेटा होता तो कितना अच्छा रहता। बहू होती तो हमें घर वापस जाने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती। ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि तूने ये बात तो सही कही है, चल मैं तेरे लिए बहू ला ही देता हूं। ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से कहा कि एक पोटली में आटा डाल कर कुछ मोहरे रख दे। ब्राह्मण के कहने पर ब्राह्मणी ने आटे की पोटली बांध कर दे दी।
ब्राह्मण पोटली ले कर चला गया। कुछ दूर जाने पर उसे नदी के किनारे बहुत सी सुंदर लड़कियां दिखाई दीं। वे लड़कियां रेत में घर बना कर खेल रही थीं। उनमें से एक लड़की ने कहा कि मैं अपना घर नहीं तोड़ूंगी, मुझे तो रहने के लिए ये घर चाहिए। उस लड़की की बात सुनकर ब्राह्मण ने मन में सोचा कि बहू बनाने के लिए यही लड़की ठीक रहेगी। जब वह लड़की अपने घर जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे पीछे उसके घर चला गया। वहां जाकर ब्राह्मण ने कहा बेटी, अभी कार्तिक मास चल रहा है इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता। तुम अपनी मां से पूछो कि क्या वह मेरे लिए चार रोटी बना देगी, मैं अपने साथ आटा लेकर आया हूं लेकिन अगर वह मेरा आटा छान कर रोटी बनाएगी तो ही मैं रोटी खाऊंगा।
लड़की ने जाकर अपनी मां से सारी बात कह दी। लड़की की मां ने कहा – ठीक है, जाकर बाबा से कह दे कि वह अपना आटा दे दे मैं छानकर रोटी बना दूंगी। जब वह आटा छानने लगी तो आटे में से मोहरे निकलीं। वह सोचने लगी! कि जिस के आटे में इतनी मोहरे है उसके घर में जाने कितनी मोहरे होंगी। जब वह ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की मां ने कहा – बाबा क्या आप अपने लड़के की सगाई करने जा रहे हो। तब ब्राह्मण ने कहा कि मेरा बेटा तो काशी में पढ़ने गया हुआ है लेकिन यदि तुम कहो तो खांड कटोरे से विवाह करके तेरी बेटी को अपने साथ ले जाऊं। लड़की की मां ने कहा – ठीक है बाबा और खांड कटोरे से शादी करके अपनी बेटी को ब्राह्मण के साथ भेज दिया। ब्राह्मण ने घर आकर अपनी पत्नी को आवाज लगाई और कहा कि रामू की मां दरवाजा खोलकर देख मैं तेरे लिए बहू लेकर आया हूं।

ब्राह्मणी अन्दर से ही बोली दुनिया ताने मारती थी, अब आप भी ताना मारने लगे हमारे तो सात जन्म तक कोई बेटा नहीं है तो बहू कहां से आएगी। ब्राह्मण ने कहा कि तू दरवाजा खोल कर देख तो सही। जब ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला तो सामने बहू को खड़ी देखा, तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने बहू का बहुत प्यार से स्वागत किया और अंदर ले आई। अब जब भी ब्राह्मण और ब्राह्मण गंगा स्नान करने जाते तो बहू घर का सारा काम करके और खाना बना कर रखती। वह उनके कपड़े धोती और रात को पैर भी दबाती। इस तरह काफी समय बीत गया। ब्राह्मणी अपनी बहू को समझाती थी, कि बहू कभी भी चूल्हे की आग मत बुझने देना और मटके का पानी खत्म मत होने देना। 1 दिन चूल्हे की आग बुझ गई। तब बहू भाग कर अपनी पड़ोसन के पास गई और बोली कि बहन! मेरे चूल्हे की आग बुझ गई है और मेरे सास–ससुर घर पर नहीं हैं, मुझे थोड़ी आग दे दो। वह दोनों थक कर आएंगे मुझे उनके लिए खाना बनाना है। तब पड़ोसन ने कहा कि तू तो बावली है, इनके कोई बेटा नहीं है। बहू ने कहा – नहीं, ऐसा मत बोलो, इनका बेटा तो बनारस में पढ़ने के लिए गया हुआ है।
तब पड़ोसन ने कहा कि यह तुझे झूठ बोल कर लाए हैं। अब बहू पड़ोसन की बातों में आ गई और कहने लगी कि अब आप ही बताइए मैं क्या करूं। पड़ोसन ने कहा कि करना क्या है,जब तुम्हारे सास ससुर आए तो जली-फुँकी रोटियां बना कर देना और बिना नमक की दाल बना कर देना। खीर की कड़छी दाल में और दाल की कड़छी खीर में डाल देना। वह पड़ोसन की सारी सीख लेकर घर आ गई जब उसके सास ससुर घर आए तो उसने ना तो उनका आदर सत्कार किया ना ही उनके कपड़े धोए। जब उसने सास-ससुर को खाना दिया तो सास बोली बहू आज यह रोटियां जली-फुँकी क्यों है और दाल भी अलुनी है। तब बहू ने पलट कर जवाब दिया कि एक दिन ऐसा खाना खा लोगे तो कुछ बिगड़ नहीं जाएगा तुम्हारा।
सास–ससुर को खरी-खोटी सुनाकर वह फिर से पड़ोसन के पास गई और बोला कि अब आगे क्या करना है। पड़ोसन ने कहा कि अब तुम सातों कोठों की चाबी मांग लेना। फिर अगले दिन जब उसके सास– ससुर स्नान करने के लिए जाने लगे तो बहू अड़ गई कि मुझे तो सातों कोठों की चाबी चाहिए। तब ससुर ने कहा कि इसे चाबी दे दो आज नहीं तो कल इसे ही देनी है। तब सास ने बहू को चाबी दे दी। सास ससुर के जाने के बाद जब बहू ने दरवाजे खोले तो देखा कि किसी में अन्न भरा है,किसी में धन भरा है और किसी कोठे मे बर्तन पडे है। जब उसने सबसे ऊपर का सातवा कोठा खोला तो देखा कि उसमें शिव जी, पार्वती माता, गणेश जी, लक्ष्मी माता जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसा जी का बिडवा, गंगा यमुना, व 33 कोटी देवी–देवता विराजमान है। वहीं पर एक लड़का चंदन की चौकी पर बैठा माला जप रहा है।

यह सब देख कर उसने लड़के से पूछा कि तू कौन है। लड़का बोला कि मैं तेरा पति हूं तू अभी दरवाजा बंद कर दे और जब मेरे माता–पिता आएं तब दरवाजा खोलना। यह सब देखकर बहू बहुत खुश हुई और सोलह श्रंगार कर सुंदर वस्त्र पहन कर अपने सास-ससुर का इन्तजार करने लगी। उसने अपने सास-ससुर के लिए खूब सारे पकवान बनाए। जब उसके साथ ससुर घर पर आए तो उसने उनका आदर सत्कार किया और प्रेम पूर्वक खाना खिलाया और फिर अपनी सास के पैर दबाने लगी पैर दबाते दबाते बहू ने कहा कि मां आप इतनी दूर गंगा यमुना स्नान करने के लिए जाती हो तो आप थक जाती हो इसलिए आप घर पर ही स्नान क्यों नहीं करती हो। यह सुन सास कहने लगी कि बेटी गंगा–यमुना घर पर तो बहती नहीं है। तब उसने कहा हां मां जी गंगा–यमुना घर पर ही बहती हैं चलो मैं आपको दिखाती हूं।

जब बहू ने सातवां कोठा खोल कर दिखाया तो उसमें शिव जी, पार्वती जी, गणेश जी, लक्ष्मी जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसा जी का बिडवा, गंगा यमुना बह रही है और, 33 कोटी देवी देवता विराजमान है। वहीं चौकी पर बैठा एक लड़का माला जप रहा है। मां ने कहा कि बेटा तू कौन है! लड़का बोला – मां मैं तेरा बेटा हूं! तब ब्राह्मणी ने पूछा कि तू कहां से आया है। लड़के ने जवाब दिया कि मुझे कार्तिक देवता ने भेजा है। बुढ़िया ने कहा कि बेटा यह दुनिया कैसे मानेगी कि तू मेरा बेटा है, बुढ़िया ने कुछ विद्वान पंडितों से मदद मांगी। पंडितों ने कहा कि इस पार बहू–बेटा खड़ा हो जाए और उस पार बुढ़िया खड़ी हो जाए। बुढ़िया ने चमडे की अंगिया पहनी हो और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी मूंछ भीगे और पवन पानी से गठजोड़ा बंधे तब माने कि यह बुढ़िया का ही बेटा है।

उसने ऐसा ही किया चमड़े की अंगिया फट गई और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी मूंछ भीग गई, पवन पानी से बहू बेटे का गठजोड़ बंध गया। यह सब देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी की खुशी का ठिकाना ना रहा। हे! कार्तिक के ठाकुर, जैसे ब्राह्मण ब्राह्मणी को उनका बहू–बेटा दिया वैसे सबको देना। कार्तिक मास की कथा कहने, सुनने वाले सब लोगों पर कृपा करना।
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