Khichdi ka katora–Kartik Maas Ki Kahani.

खिचड़ी का कटोरा कार्तिक मास की कहानी।

किसी गांव में एक बूढ़ी औरत रहा करती थी, वह औरत हमेशा कार्तिक के महीने में व्रत किया करती थी। जब उसका व्रत के खोलने का समय होता उस समय भगवान कृष्ण आते और एक कटोरा खिचड़ी का रखकर चले जाते थे। उस बुढ़िया के पास वाले घर में एक दूसरी औरत रहती थी जो हमेशा यह देखती थी उसको बुढ़िया से बहुत जलन होती थी कि इसका कोई भी नहीं है फिर भी इसे खाने के लिए खिचड़ी मिल जाती है। एक दिन कार्तिक महीने में स्नान के लिए वह बूढ़ी औरत गंगा में गई और उसके जाने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने उसके लिए खिचड़ी का कटोरा उसके घर पर रख दिया। पड़ोसन ने देखा कि खिचड़ी का कटोरा रखा है और बुढ़िया घर पर नहीं है तो उसने खिचड़ी का कटोरा उठाकर घर के पिछवाड़े फेंक दिया।

जब बुढ़िया कार्तिक स्नान करने के बाद घर वापस लौट कर आई तो उसे खिचड़ी का कटोरा नहीं मिला और फिर वह उस दिन भूखी ही रही। वह औरत बार–बार एक ही बात दोहराती रही कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहां गया मेरा खिचड़ी का कटोरा? बुढ़िया की पड़ोसन ने जहां खिचड़ी का कटोरा फेंका था वहां पर एक पौधा उग आया और उसमें बहुत सुंदर दो फूल खिल गए। एक बार उस राज्य का राजा उस ओर से निकला तो उसने उन दोनों फूलों को देखा तो उसने वह फूल तुड़वा लिए और अपने महल में ले आया। महल में लौट कर उसने वह फूल अपनी रानी को दे दिए। रानी ने जब उन फूलों को सूंघा तो वह गर्भवती हो गई। कुछ समय बाद रानी ने दो सुंदर पुत्रों को जनम दिया। राजा के दोनों पुत्र जब बड़े हुए तो वह किसी से भी बोलते नहीं थे,लेकिन जब वह दोनों शिकार पर जाते थे तो रास्ते में उन्हें वही बुढ़िया मिलती थी जो अभी तक यही कहती थी कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहां गया मेरा कटोरा? उस बुढ़िया की बात सुनकर दोनों बालक कहते कि हम ही हैं तुम्हारी खिचड़ी और हम ही हैं तुम्हारा कटोरा! ऐसा हर बार होता था जब वह दोनों बालक शिकार पर जाते थे।

एक बार राजा के कानों में यह बात पड़ गई, राजा को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ कि दोनों लड़के किसी से भी बात नहीं करते हैं तब यह बुढ़िया से कैसे बात करते हैं। राजा ने बुढ़िया को अपने महल में बुलवाया और कहा कि हम से तो और किसी से भी ये दोनों नहीं बोलते हैं, लेकिन तुमसे यह कैसे बोलते है? बुढ़िया ने कहा कि महाराज मुझे नहीं मालूम कि ये दोनों मुझसे क्यों बोलते हैं। मैं तो कार्तिक का व्रत करती थी और भगवान श्रीकृष्ण मुझे खिचड़ी का कटोरा भरकर दे जाते थे। एक दिन जब मैं गंगा स्नान कर के वापस आई तो मुझे वह खिचड़ी नहीं मिली, मैं तबसे यही कहने लगी कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहां गया मेरा कटोरा। तब उन दोनों बच्चों ने कहा कि तुम्हारी पड़ोसन ने तुम्हारी खिचड़ी फेंक दी थी तो उसके दो फूल बन गए थे। वह फूल राजा तोड़कर ले गए और अपनी रानी को दे दिए,और जब रानी ने फूल सूंघा तो हम दो लड़कों का जन्म हुआ। हमें भगवान श्री कृष्ण ने ही आपके लिए भेजा है। सारी बात सुनकर राजा ने बुढ़िया को महल में ही रहने को कहा। हे कार्तिक महाराज! जैसे आपने बुढ़िया की बात सुनी वैसे ही आपका व्रत करने वालों की भी सुनना।

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