Sharad Purnima Vrat Katha In Hindi.

शरद पूर्णिमा

आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यह पूर्णिमा तिथि धनदायक पूर्णिमा मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। इस बार यह पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर को है। शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सबसे खास माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन चन्द्र पूजा भी की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्‍मी की उत्‍पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। इस तिथि को धनदायक माना जाता है और माना गया है कि इस दिन मां लक्ष्‍मी पृथ्‍वी पर विचरण करने आती हैं,। और जो लोग रात्रि में भजन तथा कीर्तन करते हुए मां लक्ष्‍मी की पूजा–अर्चना करते हैं उनके घर धन की देवी वास करती हैं। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी से पूरी धरती सराबोर रहती है और अमृत की बरसात होती है। इन्‍हीं मान्‍यताओं के आधार पर ऐसी परंपरा बनाई गई है कि रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने से उसमें अमृत समा जाता है।

शरद पूर्णिमा की कहानी

एक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसके कारण बड़ी बहन की सारी संतान जीवित रहती थी और छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी।

उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। लेकिन यदि तुम पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करो तो तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।

पंडितों की सलाह पर छोटी पुत्री ने पूर्णिमा का व्रत व्रत पूरी विधि से किया। कुछ दिनों बाद उसे एक लड़का पैदा हुआ परन्तु कुछ दिनों बाद वह फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर वह अपनी बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया जिसपर बच्चे को लिटाया था। बड़ी बहन जब पाटे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बड़ी बहन का घाघरा बच्चे को छूते ही बच्चा रोने लगा। बड़ी बहन ने अपनी छोटी बहन से कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थीं, कि मैंने तुम्हारे बच्चे को मार दिया। तब छोटी बहन ने कहा कि यह तो मर गया था तुम्हारे छूने से ही यह जीवित हुआ है। यह सब तुम्हारे ही पुण्य का फल है। उसके बाद छोटी बहन ने पूरे नगर में पूर्णिमा का व्रत पूरा करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

शरद पूर्णिमा का महत्व

यह व्रत सभी मनोकामना पूरी करता हैं। इसे शरद पूर्णिमा तथा रास पूर्णिमा भी कहा जाता हैं। चन्द्रमा के प्रकाश को कुमुद कहा जाता हैं, इसलिए इसे कौमुदी व्रत की उपाधि भी दी गई है। इस दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीला रची थी, जिसे महा रास कहा जाता हैं। यह त्यौहार पूरे देश में भिन्न- भिन्न मान्यताओं के साथ मनाया जाता हैं। इस दिन लक्ष्मी माता की पूजा का महत्व होता हैं,। लक्ष्मी जी सुख समृद्धि की देवी हैं अपनी इच्छा के अनुसार मनुष्य इस दिन व्रत एवम पूजा पाठ करता हैं। इस दिन रतजगा किया जाता हैं, रात्रि के समय भजन एवम चाँद के गीत गायें जाते हैं तथा खीर का मजा लिया जाता हैं।

शरद पूर्णिमा की लक्ष्मी जी की आरती

ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।

सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।

सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।

उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

ओम जय लक्ष्मी माता॥

चन्द्र देव की आरती

ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।

दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी।

रजत सिंहासन राजत, ज्योति तेरी न्यारी।

दीन दयाल दयानिधि, भव बंधन हारी।

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।

सकल मनोरथ दायक, निर्गुण सुखराशि।

योगीजन हृदय में, तेरा ध्यान धरें।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, संत करें सेवा।

वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी।

प्रेमभाव से पूजें, सब जग के नारी।

शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी।

धन सम्पत्ति और वैभव, सहजे सो पावे।

विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी।

सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें।

ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा।

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