Papan kusha Ekadashi Vrat Katha In Hindi.

पापांकुशा एकादशी

यह व्रत आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इसमें भगवान पदम् नाभ की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। व्रत करने वाले को प्रातः काल उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराकर विधिपूर्वक श्रद्धा, भक्ति भाव से पूजन करें और भगवान को भोग लगाएं। भक्तों में प्रसाद वितरण कर ब्राह्मण को भोजन कराकर अपनी श्रद्धानुसार दान दें। भगवान के निकट भजन, कीर्तन कर रात्रि जागरण करें। उपवास में अन्न का सेवन ना करें, एक समय ही फलाहार करें।

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

एक बहेलिया था जो बहुत ही क्रूर था। वो बहेलिया विंध्याचल पर्वत पर रहता था। उसका नाम भी उसके नाम के अनुरूप ही था उसका क्रोधन था। क्रोधन ने अपना सारा जीवन लूटपाट, हिंसा, शराब और वेश्यागमन में बिता दिया था। यमराज ने उसकी मृत्यु के एक दिन पहले अपने दूत उसे लाने के लिए भेजे। दूतों ने क्रोधन को बताया कि कल तुम्हारा अंतिम दिन है, इस लिए हम तुम्हे लेने के लिए आए हैं। क्रोधन मृत्यु के डर से ऋषि के आश्रम पहुंचा और ऋषि से अपनी प्राण रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा। उसकी प्रार्थना सुनकर ऋषि को उसपर दया आ गई। ऋषि ने क्रोधन को प्राण रक्षा करने के लिए उससे आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु जी की पूजा करने की सलाह दी और उसे व्रत की सारी विधि बताई। संयोग से उस दिन एकादशी ही थी, क्रोधन ने ऋषि के बताए अनुसार एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा और विधि पूर्वक किया। भगवान श्री विष्णु जी की कृपा से वह विष्णुलोक को चला गया और यमराज के दूत हाथ मलते रह गए।

पापांकुशा एकादशी का महत्व

पुराणों के अनुसार, जैसा फल कठिन तपस्या करके प्राप्त किया जा सकता है, वैसा ही फल पापांकुशा एकादशी का व्रत करके प्राप्त किया जा सकता है। पापांकुशा एकादशी से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति सच्चे मन और श्रद्धा से इस पापांकुशा एकादशी का व्रत करता है, उसे साक्षात बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। एकादशी का व्रत करने से चन्द्रमा के खराब प्रभाव को भी रोका जा सकता है। एकादशी के दिन दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापाकुंशा एकादशी का महत्व बताया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए।

पापांकुशा एकादशी की आरती

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।

विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।

गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।

शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।

पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,

शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।

शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।

विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,

पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,

नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,

नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।

देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।

श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।

इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।

रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।

पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।

शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।

जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।

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