Parivartini Ekadashi Vrat Katha

परिवर्तिनी एकादशी:
परिवर्तिनी एकादशी को पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह श्री लक्ष्मी जी का परम आह्लादकारी व्रत है। यह व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु क्षीरसागर में शेषसागर पर लेटे हुए करवट बदलते हैं इसीलिए इसे करवटनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा करना उत्तम माना गया है क्योंकि इस दिन देवताओं ने अपने राज्य को वापस पाने के लिए महालक्ष्मी की ही पूजा–अर्चना की थी। इसके अलावा इस एकादशी को जयझूलनी एकादशी, डोल ग्यारस एकादशी आदि कई नामों से जानी जाती है। इसके अलावा इस एकादशी को वामन एकादशी भी कहते है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन के स्वरूप की पूजा की जाती है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा सुनी जाती है।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व

परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करने से यज्ञ के बराबर फल मिलता है। परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु या उनके अवतारों की पूजा करने वाले भक्तों की भगवद्दर्शन की इच्छा होती है। मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के प्रभाव से यह इच्छा पूर्ण होती है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान अपने पांचवें अवतार यानी वामन अवतार में पृथ्वी पर आए थे। इसीलिए इस दिन वामन जयंती भी मनाई जाती है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि:
इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान करते हुए उन्हें दही, दूध, घी, शहद, शक्कर से स्नान करवाएं। इसके बाद गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम-अक्षत लगायें। वामन भगवान् की कथा का श्रवण या वाचन करें और दीपक जलाकर आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें और व्रत रखें। एक समय ही खायें और हो सके तो नमक नहीं खायें या एक बार सेंधा नमक खा सकते हैं। भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र ‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’’ का यथा संभव तुलसी की माला से जाप करें। इसके बाद शाम के समय भगवान विष्णु के मंदिर अथवा उनकी मूर्ति के समीप भजन तथा कीर्तन आदि का कार्यक्रम करें।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा:

त्रेता युग में प्रहलाद का पौत्र राजा बलि राज्य करता था। वह ब्राम्हणों का सेवक और भगवान श्री विष्णु का उपासक था और इंद्र आदि सभी देवताओं का शत्रु था। अपने बल के कारण उसने देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली थी और इन्द्र से इंद्रासन छीनकर सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था। तब देवताओं को दुःखी देखकर विष्णु भगवान ने बामन का वेष धारण कर के बलि के द्वार पर आकर भिक्षा मांगते हुए कहा–कि हे राजन्! मुझे केवल तीन पग भूमि का दान चाहिए। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य जान गए कि ये भगवान विष्णु हैं, उन्होंने बलि को सचेत किया तब राजा बलि ने कहा कि मैं तो आपको तीन लोक दे सकता हूं अतः आप विराट रूप धारण करके भूमि नाप लो। तब बामन ने अपना विराट रूप धारण कर लिया और दो पग में पूरी धरती को नाप लिया, जब उन्होंने तीसरा पग उठाया तो राजा बलि ने अपना सिर उनके पैर के नीचे रख दिया। भगवान ने चरण धरकर दबाया तो बलि पाताल लोक पहुंच गया।

जब भगवान चरण उठाने लगे तो बलि ने हाथ पकड़कर कहा कि मैं इन्हे मन्दिर में रखूंगा। भगवान ने कहा कि हे बलि यदि तुम बामन एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा और विधि पूर्वक करो तो मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूंगा और तुम्हारे द्वार पर कुटिया बनाकर रहूंगा। प्रभु की आज्ञानुसार राजा बलि ने बामन एकादशी का व्रत विधि पूर्वक किया और तभी से भगवान की एक प्रतिमा द्वारपाल बनकर पाताल में और एक क्षीरसागर में निवास करने लगी। इस प्रकार से देवताओं को उनका राज्य वापस मिल गया। जो कोई भी इस एकादशी व्रत को नियमपूर्वक करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।