Sri krishna Janmashtami Vrat Katha In Hindi.

जन्माष्टमी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव जी पत्नी देवी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओं से निपुण भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। इस दिन रोहिणी नक्षत्र का विशेष महात्म्य है। इस दिन देश भर के मन्दिरों को सजाया जाता है, और भगवान श्रीकृष्ण का साज श्रृंगार किया जाता है। मन्दिरों में झांकी सजाई जाती है। भगवान श्री कृष्ण जी का झूला सजाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण जी का सिंगार करके उन्हे झूले में लिटाया जाता है। इस दिन सभी लोग व्रत रखते हैं और फिर भगवान के भजन, कीर्तन किए जाते हैं। रात के बारह बजे शंख और घंटों की आवाज के साथ श्री कृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूंजती है। उसके बाद भगवान श्री कृष्ण की आरती उतारी जाती है। इसके बाद प्रसाद बांटा जाता है और इसी प्रसाद को खाकर लोग अपने व्रत को खोलते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी की कथा:

द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार जब हद से ज्यादा बढ़ने लगे तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके अपना दुखड़ा सुनाने और अपने उद्धार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रम्हा जी सब देवताओं को और पृथ्वी को साथ लेकर विष्णु जी के पास श्रीर सागर पहुंचे। उस समय भगवान विष्णु अनन्त शैय्या पर विराजमान थे। सब देवताओं और ब्रह्मा जी की स्तुति सुनकर विष्णु जी की निंद्रा टूट गई, उन्होंने सबके एक साथ आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोलीं ” भगवन्! मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूं कृपा करके मेरा उद्धार कीजिए।”। यह सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि मैं बृज मण्डल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा तुम सब देवतागण बृजभूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो, ये कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।

इसके बाद देवतागण बृज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द–यशोदा तथा गोप, गोपियों के रूप में पैदा हुए। द्वापर युग के अंत में मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन राज्य करते थे। राजा उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर और बंदी बनाकर जेल में डाल दिया और खुद राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव वंश में वसुदेव जी के साथ हुआ। कंस अपनी बहन को बहुत प्यार करता था। कंस जब देवकी को विदा करते हुए रथ के साथ चल रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई कि–”हे कंस! आज जिस बहन को तू इतने लाड़ और दुलार से विदा कर रहा है इसी के आठवें पुत्र के कारण तेरी मृत्यु होगी। कंस को यह सुन कर बहुत क्रोध आया और उसने वसुदेव और देवकी को मारने की ठान ली।
तब वसुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हे तो देवकी के आठवें पुत्र से भय है तो देवकी से कैसा भय! मैं तुम्हे वचन देता हूं कि मैं अपनी और देवकी की आठवीं संतान तुम्हें सौंप दूंगा फिर तुम्हारी समझ में जो आए तुम उसके साथ कर सकते हो। कंस को वसुदेव जी की बात समझ में आ गई और उसने देवकी और वसुदेव को विदा करने के बजाय कारागार में डाल दिया। तभी वहां नारद जी आ पहुंचे और कंस से बोले कि तुम्हे ये कैसे पता चलेगा कि आठवां बच्चा कौन सा होगा। गिनती शुरू से या अंत से होगी कैसे पता चलेगा। कंस ने नारद जी की बात सुनकर देवकी की सारी संतानों को मारने का निश्चय कर लिया। उसके बाद देवकी को जो भी संतान होती कंस उसको मार देता। इस प्रकार कंस ने एक–एक करके सभी पुत्रों को मार डाला।

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी प्रकाशमय हो गई। भगवान विष्णु ने शंख, चक्र, गदा और पद्दमधारी चतुर्भुज रूप प्रकट करते हुए देवकी और वसुदेव से कहा –” अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं और तुम मुझे तुरंत ही गोकुल में नंद बाबा के घर पहुंचा दो, उनके यहां कन्या का जन्म हुआ है उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दो।

वसुदेव जी की हाथों की हथकड़ियां तुरंत खुल गई। जेल के दरवाजे अपने आप खुल गए और पहरेदार सो गए। उसके बाद वसुदेव जी भगवान श्री कृष्ण जी को टोकरी में रखकर गोकुल की ओर चल पड़े।

वसुदेव जी जब कृष्ण जी को लेकर यमुना नदी में उतरे तो यमुना जी का जल उफान पर आ गया जब यमुना जी का जल बहुत बढ़ गया तो भगवान श्री कृष्ण ने अपना पैर लटका दिया और यमुना जी उनके चरण छू लेने के बाद घट गईं और उन्होंने वसुदेव जी को रास्ता दे दिया। फिर वसुदेव जी ने गोकुल पहुंच कर श्री कृष्ण जी को यशोदा जी के बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे अपने आप बंद हो गए और वसुदेव जी के हाथों में हथकड़ियां पड़ गईं, सभी पहरेदार जाग कर पहरा देने लगे। कन्या के रोने की आवाज जब कंस के कानों में पहुंची तो वह कन्या को मारने के लिए तुरंत कारागार में पहुंच गया। कंस ने कन्या को लेकर पत्थर पर पटकना चाहा परन्तु वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में चली गई और उस कन्या ने देवी का रूप धारण करके बोली कि ” हे कंस! मुझे मार कर तुझे कोई लाभ नहीं मिलेगा! तुझे मारने वाला तो गोकुल में पहुंच चुका है।

कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए अपने दैत्यों को गोकुल भेजा और कहा कि वहां जाकर जितने भी बच्चे तुरंत ही पैदा हुए हैं उनको मार दो। कंस ने अनेकों षडयंत्र रचे लेकिन वह श्री कृष्ण का बाल भी बांका नहीं कर सका। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी अलौकिक शक्ति और माया से सारे दैत्यों को मार दिया। बड़े होने पर श्री कृष्ण के कंस को मारकर राजा उग्रसेन को राजगद्दी सौंप दी। कृष्ण की जन्मतिथि को तभी से सारे देश में जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग व्रत रखते हैं और हर्ष के साथ श्री कृष्ण का जन्म दिन मनाते हैं।