पार्वती बोली भोले से, ऐसा महल बना देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना, पार्वती बोली भोले से, ऐसा महल बना देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना, जिस दिन से मैं ब्याह के आई, भाग हमारे फूट गए, पीसत पीसत भंगिया तेरी, हाथ हमारे टूट गए, कान खोलकर सुन लो भोले, कान खोलकर सुन लो भोले, अब पर्वत पर न रहना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना, पार्वती बोली भोले से, ऐसा महल बना देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना,
पार्वती से बोले भोले, तेरे मन में धीर नहीं, उन ऊंचे महलों में रहना, ये अपनी तकदीर नहीं, करूं तपस्या मैं पर्वत पर, करूं तपस्या मैं पर्वत पर, मुझे महल का क्या करना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना, पार्वती बोली भोले से, ऐसा महल बना देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना,
सोना, चांदी, हीरे, मोती, चमक रहे हों चम चम चम, दास दासियां भरे हाजरी, देखो वो मेरी हर दम, बिना इजाजत कोई ना आए, बिना इजाजत कोई ना आए, पहरेदार बिठा देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना, पार्वती बोली भोले से, ऐसा महल बना देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना,
पार्वती की जिद का आगे, भोले बाबा हार गए, सुंदर महल बनाने खातिर, विश्वकर्मा तैयार हुए, पार्वती लक्ष्मी से बोलीं, पार्वती लक्ष्मी से बोलीं, गृह प्रवेश पर आ जाना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना, पार्वती बोली भोले से, ऐसा महल बना देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना,
गृह प्रवेश करवाने खातिर, पंडित को बुलवाया था, रावण से बढ़कर ना ज्ञानी, गृह प्रवेश करवाया था, सुंदर महल बना सोने का, सुंदर महल बना सोने का, इसे दान में दे देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना, पार्वती बोली भोले से, ऐसा महल बना देना, कोई भी देखे तो वो बोले, क्या कहना भई क्या कहना,