Sheetla Mata Ki Kahani–2!!

बहुत समय पहले की बात है एक बार शीतला माता ने सोचा कि मैं धरती पर जाकर देखती हूं कि मेरी पूजा कौन–कौन करता है, यह सोचकर शीतला माता धरती पर एक गांव में पहुंचती हैं।

शीतला माता जब गांव में पहुंचती हैं तो देखती हैं कि गांव में उनका कोई भी मंदिर नहीं है और न ही कोई उनकी पूजा करता है। शीतला माता गांव में घूम रही थी कि तभी एक घर की छत से किसी ने चावल का उबलता हुआ पानी फेंका जो शीतला माता के ऊपर आकर गिरा खौलते हुए पानी के पड़ने से शीतला माता बुरी तरह जल गई और उनके पूरे शरीर पर फफोले पड़ गए। जिससे उनके पूरे शरीर में जलन होने लगी, शीतला माता इधर–उधर भागती हुई चिल्लाने लगी कि अरे कोई आओ मेरे शरीर में बहुत जलन हो रही है कोई तो कुछ करो, लेकिन कोई भी उनकी मदद करने के लिए नहीं आया।

तभी उन्हें एक घर के बाहर बैठी हुई एक औरत दिखी जोकि कुम्हारन थी, कुम्हारन ने जब देखा कि एक बूढ़ी माई चिल्लाती हुई इधर उधर भाग रही हैं तो उसने उनसे पूछा कि माई तुम्हे क्या हुआ है तो शीतला माता ने उसे बताया कि किसी ने चावल का उबलता हुआ पानी फेंका था वह उनके ऊपर पड़ गया है उसी वजह से उनके शरीर में फफोले हो गए हैं और जलन हो रही है।

कुम्हारिन ने कहा कि माई तुम यहां मेरे पास आकर बैठ जाओ मैं तुम्हारे ऊपर घड़े का ठंडा पानी डालती हूं जिससे तुम्हे आराम मिल जाएगा। कुम्हारिन ने खूब ठंडा पानी शीतला माता के शरीर पर डाला जिससे उनके पूरे शरीर को बहुत ठंडक मिली। फिर कुम्हारिन ने शीतला माता से कहा कि माई तुम अंदर आ जाओ मेरे पास रात की बनी हुई राबड़ी रखी है और थोड़ा दही भी है तुम उसको खा लो, शीतला माता ने राबड़ी और दही खाया तो उन्हे बहुत अच्छा लगा और उनकी सारी जलन शांत हो गई।

तब कुम्हारिन ने कहा कि माई तुम यहां आकर बैठ जाओ मैं तुम्हारे बाल झाड़ कर चोटी गूंथ देती हूं तुम्हारे बाल बहुत उलझे हुए हैं। कुम्हारिन बहुत प्यार से शीतला माता के बाल में कंघी करने लगी, तभी उसकी नज़र मां के बालों में सर के पीछे पड़ती है तो वह डर जाती है क्योंकि वहां पर शीतला माता की तीसरी आंख दिख जाती है। कुम्हारिन डर कर वहां से भागने लगती है तो शीतला माता कहती हैं बेटी रुक जाओ मुझसे डरो नहीं मैं शीतला देवी हूं।
मैं तो धरती पर यह देखने के लिए आई थी कि कौन कौन यहां पर मेरी पूजा करता है।

इतना कहकर शीतला माता अपने असली रूप में आ गईं, माता के दर्शन करके कुम्हारिन सोच में पड़ गई कि अब मैं माता को कहां बैठाऊं और उनको क्या खिलाऊं, उसको सोच में डूबा देखकर शीतला माता ने पूछा कि बेटी तुम किस सोच में पड़ गईं तो कुम्हारिन ने कहा कि माई मैं तुम्हे कहां बिठाऊँ मेरे यहां तो हर तरफ दरिद्रता है मैं तुम्हे क्या खिलाऊं! 

शीतला माता वहां खड़े हुए गधे पर बैठ गईं, शीतला माता ने खुश होकर एक हाथ में झाड़ू और एक हाथ में डालिया लेकर कुम्हारिन के घर की दरिद्रता को झाड़ कर डालिया में भरकर फेंक दिया।  शीतला माता ने कुम्हारिन से कहा कि बेटी मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं तुम जो चाहो वरदान मांग लो।  

कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर शीतला माता से कहा कि मां अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं और मुझे कुछ देना चाहती हैं तो मेरी आपसे विनती है कि आप हमारे गांव में ही रुक जाइए। और जैसे आपने मेरी दरिद्रता को दूर किया है उसी प्रकार जो भी आपको होली के बाद की सप्तमी को भक्ति भाव से पूजा कर आपको ठंडा जल, दही और बासी ठंडा भोजन चढ़ाए तो आप उसके घर की दरिद्रता को दूर कर देना। और जो भी स्त्री सच्ची सेवा भक्ति से आपकी पूजा करे उसे अखंड सौभाग्य था उसकी गोद हरी भरी रखना।

कुम्हारिन ने कहा कि माता जो भी पुरुष शीतला अष्टमी को नाई के यहां बाल ना कटवाए और धोबी को कपड़े ना दे और आप पर ठंडा जल, फूल चढ़ाकर आपकी पूजा करे उस व्यक्ति को कभी भी उसके व्यापार और घर में दरिद्रता ना आए। तब देवी ने कहा कि बेटी तुमने जो भी वरदान मुझसे मांगे हैं मैं वह सब तुम्हे देती हूं। और मैं तुम्हे यह भी वरदान देती हूं कि मेरी पूजा पर सबसे पहला और मुख्य अधिकार कुम्हार जाति का होगा। उसी दिन से शीतला माता वहां स्थापित हो गईं, और उस गांव का नाम हो गया शील की डोंगरी, शील की डोंगरी में शीतला माता का मुख्य मंदिर है, शीतला सप्तमी को वहां बहुत विशाल मेला लगता है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से घर की दरिद्रता का नाश होता है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

हे! शीतला माता जैसे आपने उस कुम्हारिन की दरिद्रता को दूर किया वैसे ही अपने सभी भक्तों पर अपनी कृपा और करुणा बनाए रखना।

जय हो शीतला माता की🙏

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